1

ऊज़ देश में अरयूब नाम एक पुरूष था; वह खरा और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से परे रहता था।
उसके सात बेटे और तीन बेटियां उत्पन्न हुई।
फिर उसके सात हजार भेड़- बकरियां, तीन हजार ऊंट, पांच सौ जोड़ी बैल, और पांच सौ गदहियां, और बहुत ही दास- दासियां थीं; वरन उसके इतनी सम्पत्ति थी, कि पूरबियों में वह सब से बड़ा था।
उसके बेटे उपने अपने दिन पर एक दूसरे के घर में खाने- पीने को जाया करते थे; और अपनी तीनों बहिनों को अपने संग खाने- पीने के लिये बुलवा भेजते थे।
और जब जब जेवनार के दिन पूरे हो जाते, तब तब अरयूब उन्हें बुलवाकर पवित्रा करता, और बड़ी भोर उठकर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता था; क्योंकि अरयूब सोचता था, कि कदाचित् मेरे लड़कों ने पाप करके परमेश्वर को छोड़ दिया हो। इसी रीति अरयूब सदैव किया करता था।
एक दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्रा उसके साम्हने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया।
यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि पृथ्वी पर इधर- उधर घूमते- फिरते और डोलते- डालते आया हूँ।
यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अरयूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।
शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, क्या अरयूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?
क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है।
परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।
यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना। तब शैतान यहोवा के साम्हने से चला गया।
एक दिन अरयूब के बेटे- बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पी रहे थे;
तब एक दूत अरयूब के पास आकर कहने लगा, हम तो बैलों से हल जोत रहे थे, और गदहियां उनके पास चर रही थी,
कि शबा के लोग धावा करके उनको ले गए, और तलवार से तेरे सेवकों को मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।
वह अभी यह कह ही रहा था कि दूसरा भी आकर कहने लगा, कि परमेश्वर की आग आकाश से गिरी और उस से भेड़- बकरियां और सेवक जलकर भस्म हो गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।
वह अभी यह कह ही रहा था, कि एक और भी आकर कहने लगा, कि कसदी लोग तीन गोल बान्धकर ऊंटों पर धावा करके उन्हें ले गए, और तलवार से तेरे सेवकों को मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।
वह अभी यह कह ही रहा था, कि एक और भी आकर कहने लगा, तेरे बेट- बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पीते थे,
कि जंगल की ओर से बड़ी प्रचणड वायु चली, और घर के चारों कोनों को ऐसा झोंका मारा, कि वह जवानों पर गिर पड़ा और वे मर गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ।
तब अरयूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुंड़ाकर भूमि पर गिरा और दणडवत् करके कहा,
मैं अपनी मां के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊंगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है।
इन सब बातों में भी अरयूब ने न तो पाप किया, और न परमेश्वर पर मूर्खता से दोष लगाया।

2

फिर एक और दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्रा उसके साम्हने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी उसके साम्हने उपस्थित हुआ।
यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि इधर- उधर घूमते- फिरते और डोलते- डालते आया हूँ।
यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अरयूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? और यद्यापि तू ने मुझे उसको बिना कारण सत्यानाश करते को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है।
शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।
सो केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हडि्डयां और मांस छू, तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।
यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना।
तब शैतान यहोवा के साम्हने से निकला, और अरयूब को पांव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ों से पीड़ित किया।
तब अरयूब खुजलाने के लिये एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया।
तब उसकी स्त्री उस से कहने लगी, क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।
उस ने उस से कहा, तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें? इन सब बातों में भी अरयूब ने अपने मुंह से कोई पाप नहीं किया।
जब तेमानी एलीपज, और शूही बिलदद, और नामाती सोपर, अरयूब के इन तीन मित्रों ने इस सब विपत्ति का समाचार पाया जो उस पर पड़ी थीं, तब वे आपस में यह ठानकर कि हम अरयूब के पास जाकर उसके संग विलाप करेंगे, और उसको शान्ति देंगे, अपने अपने यहां से उसके पास चले।
जब उन्हों ने दूर से आंख उठाकर अरयूब को देखा और उसे न चीन्ह सके, तब चिल्लाकर रो उठे; और अपना अपना बागा फाड़ा, और आकाश की ओर धूलि उड़ाकर अपने अपने सिर पर डाली।
तब वे सात दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दु:ख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उस से एक भी बात न कही।

3

इसके बाद अरयूब मुंह खोलकर अपने जन्मदिन को धिम्मारने
और कहने लगा,
वह दिन जल जाए जिस में मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिस में कहा गया, कि बेटे का गर्भ रहा।
वह दिन अन्धियारा हो जाए ! ऊपर से ईश्वर उसकी सुधि न ले, और न उस में प्रकाश होए।
अन्धियारा और मृत्यु की छाया उस पर रहे। बादल उस पर छाए रहें; और दिन को अन्धेरा कर देनेवाली चीजों उसे डराएं।
घोर अन्धकार उस रात को पकड़े; वर्ष के दिनों के बीच वह आनन्द न करने पाए, और न महीनों में उसकी गिनती की जाए।
सुनो, वह रात बांझ हो जाए; उस में गाने का शब्द न सुन पड़े
जो लोग किसी दिन को धिक्कारते हैं, और लिब्यातान को छेड़ने में निपुण हैं, उसे ध्क्किारें।
उसकी संध्या के तारे प्रकाश न दें; वह उजियाले की बाट जोहे पर वह उसे न मिले, वह भोर की पलकों को भी देखने न पाए;
क्योंकि उस ने मेरी माता की कोख को बन्द न किया और कष्ट को मेरी दृष्टि से न छिपाया।
मैं गर्भ ही में क्यों न मर गया? मैं पेट से निकलते ही मेरा प्राण क्यों न छूटा?
मैं घुटनों पर क्यों लिया गया? मैं छातियों को क्यों पीने पाया?
ऐसा न होता तो मैं चुपचाप पड़ा रहता, मैं सोता रहता और विश्राम करता,
और मैं पृथ्वी के उन राजाओं और मन्त्रियों के साथ होता जिन्हों ने अपने लिये सुनसान स्थान बनवा लिए,
वा मैं उन राजकुमारों के साथ होता जिनके पास सोना था जिन्हों ने अपने घरों को चान्दी से भर लिया था;
वा मैं असमय गिरे हुए गर्भ की नाई हुआ होता, वा ऐसे बच्चों के समान होता जिन्हों ने उजियाले को कभी देखा ही न हो।
उस दशा में दुष्ट लोग फिर दु:ख नहीं देते, और थके मांदे विश्राम पाते हैं।
उस में बन्धुए एक संग सुख से रहते हैं; और परिश्रम करानेवाले का शब्द नहीं सुनते।
उस में छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपने स्वामी से स्वतन्त्रा रहता है।
दु:खियों को उजियाला, और उदास मनवालों को जीवन क्यों दिया जाता है?
वे मृत्यु की बाट जोहते हैं पर वह आती नहीं; और गड़े हुए धन से अधिक उसकी खोज करते हैं;
वे क़ब्र को पहुंचकर आनन्दित और अत्यन्त मगन होते हैं।
उजियाला उस पुरूष की क्यों मिलता है जिसका मार्ग छिपा है, जिसके चारों ओर ईश्वर ने घेरा बान्ध दिया है?
मुझे तो रोटी खाने की सन्ती लम्बी लम्बी सांसें आती हैं, और मेरा विलाप धारा की नाई बहता रहता है।
क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है।
मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्राम मिलता है; परन्तु दु:ख ही आता है।

4

तब तेमानी एलीपज ने कहा,
यदि कोई तुझ से कुछ कहने लगे, तो क्या तुझे बुरा लगेगा? परन्तु बोले बिना कौन रह सकता है?
सुन, तू ने बहुतों को शिक्षा दी है, और निर्बल लोगों को बलवन्त किया है।
गिरते हुओं को तू ने अपनी बातों से सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगों को तू ने बलवन्त किया।
परन्तु अब विपत्ति तो तुझी पर आ पड़ी, और तू निराश हुआ जाता है; उस ने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।
क्या परमेश्वर का भय ही तेरा आसरा नहीं? और क्या तेरी चालचलन जो खरी है तेरी आशा नहीं?
क्या तुझे मालूम है कि कोई निदष भी कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए?
मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और दु:ख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।
वे तो ईश्वर की श्वास से नाश होते, और उसके क्रोध के झोके से भस्म होते हैं।
सिंह का गरजना और हिंसक सिंह का दहाड़ना बन्द हो आता है। और जवान सिंहों के दांत तोड़े जाते हैं।
शिकार न पाकर बूढ़ा सिंह मर जाता है, और सिंहनी के वच्चे तितर बितर हो जाते हैं।
एक बात चुपके से मेरे पास पहुंचाई गई, और उसकी कुछ भनक मेरे कान में पड़ी।
रात के स्वप्नों की चिन्ताओं के बीच जब मनुष्य गहरी निद्रा में रहते हैं,
मुझे ऐसी यरथराहट और कंपकंपी लगी कि मेरी सब हडि्डयां तक हिल उठीं।
तब एक आत्मा मेरे साम्हने से होकर चली; और मेरी देह के रोएं खड़े हो गए।
वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आंखों के साम्हने कोई रूप था; पहिले सन्नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा,
क्या नाशमान मनुष्य ईश्वर से अधिक न्यायी होगा? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्रा हो सकता है?
देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, और अपने स्वर्गदूतों को मूर्ख ठहराता है;
फिर जो मिट्टी के घरों में रहते हैं, और जिनकी नेव मिट्टी में डाली गई है, और जो पतंगे की नाई पिस जाते हैं, उनकी क्या गणना।
वे भोर से सांझ तक नाश किए जाते हैं, वे सदा के लिये मिट जाते हैं, और कोई उनका विचार भी नहीं करता।
क्या उनके डेरे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर नहीं कट जाती? वे बिना बुध्दि के ही मर जाते हैं !

5

पुकार कर देख; क्या कोई है जो तुझे उत्तर देगा? और पवित्रों में से तू किस की ओर फिरेगा?
क्योंकि मूढ़ तो खेद करते करते नाश हो जाता है, और भोला जलते जलते मर मिटता है।
मैं ने मूढ़ को जड़ माड़ते देखा है; परन्तु अचानक मैं ने उसके वासस्थान को धिक्कारा।
उसके लड़केबाले उठ्ठार से दूर हैं, और वे फाटक में पीसे जाते हैं, और कोई नहीं है जो उन्हें छुड़ाए।
उसके खेत की उपज भूखे लोग खा लेते हैं, वरन कटीली बाड़ में से भी निकाल लेते हैं; और प्यासा उनके धन के लिये फन्दा लगाता है।
क्योंकि विपत्ति धूल से उत्पन्न नहीं होती, और न कष्ट भूमि में से उगता है;
परन्तु जैसे चिंगारियां ऊपर ही ऊपर को उड़ जाती हैं,वैसे ही मनुष्य कष्ट ही भोगने के लिये उत्पन्न हुआ है।
परन्तु मैं तो ईश्वर ही को खोजता रहूंगा और अपना मुक़ मा परमेश्वर पर छोड़ दूंगा।
वह तो एसे बड़े काम करता है जिनकी थाह नहीं लगती, और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जाते।
वही पृथ्वी के ऊपर वर्षा करता, और खेतों पर जल बरसाता है।
इसी रीति वह नम्र लोगों को ऊंचे स्थान पर बिठाता है, और शोक का पहिरावा पहिने हुए लोग ऊंचे पर पहुचकर बचते हैं।
वह तो धूर्त्त लोगों की कल्पनाएं व्यर्थ कर देता है, और उनके हाथों से कुछ भी बन नहीं पड़ता।
वह बुध्दिमानों को उनकी धूर्त्तता ही में फंसाता है; और कुटिल लोगों की युक्ति दूर की जाती है।
उन पर दिन को अन्धेरा छा जाता है, और दिन दुपहरी में वे रात की नाई टटोलते फिरते हैं।
परन्तु वह दरिद्रों को उनके वचनरूपी तलवार से और बलवानों के हाथ से बचाता है।
इसलिये कंगालों को आशा होती है, और कुटिल मनुष्यों का मुंह बन्द हो जाता है।
देख, क्या ही धन्य वह मनुष्य, जिसको ईश्वर ताड़ना देता है; इसलिये तू सर्वशक्तिमान की ताड़ना को तुच्छ मत जान।
क्योंकि वही घायल करता, और वही पट्टी भी बान्धता है; वही मारता है, और वही अपने हाथों से चंगा भी करता है।
वह तुझे छेविपत्तियों से छुड़ाएगा; वरन सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी।
अकाल में वह तुझे मुत्यु से, और युठ्ठ में तलवार की धार से बचा लेगा।
तू वचनरूपी कोड़े से बचा रहेगा और जब विनाश आए, तब भी तुझे भय न होगा।
तू उजाड़ और अकाल के दिनों में हँसमुख रहेगा, और तुझे बनैले जन्तुओं से डर न लगेगा।
वरन मैदान के पत्थर भी तुझ से वाचा बान्धे रहेंगे, और वनपशु तुझ से मेल रखेंगे।
और तुझे निश्चय होगा, कि तेरा डेरा कुशल से है, और जब तू अपने निवास में देखेे तब कोई वस्तु खेई न होगी।
तुझे यह भी निश्चित होगा, कि मेरे बहुत वंश होंगे। और मेरे सन्तान पृथ्वी की घास के तुल्य बहुत होंगे।
जैसे पूलियों का ढेर समय पर खलिहान में रखा जाता है, वैसे ही तू पूरी अवस्था का होकर क़ब्र को पहुंचेगा।
देख, हम ने खोज खोजकर ऐसा ही पाया है; इसे तू सुन, और अपने लाभ के लिये ध्यान में रख।

6

फिर अरयूब ने कहा,
भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तुला में धरी जाती !
क्योंकि वह समुद्र की बालू से भी भारी ठहरती; इसी कारण मेरी बातें उतावली से हूई हैं।
क्योंकि सर्वशक्तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं; और उनका विष मेरी आत्मा में वैठ गया है ;ईश्वर की भयंकर बात मेरे विरूद्ध पांति बान्धे हैं।
जब बनैले गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है? और बैल चारा पाकर क्या डकारता है?
जो फीका है वह क्या बिना नमक खाया जाता है? क्या अणडे की सफेदी में भी कुछ स्वाद होता है?
जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही मानो मेरे लिये घिनौना आहार ठहरी हैं।
भला होता कि मुझे मुंह मांगा वर मिलता और जिस बात की मैं आशा करता हूँ वह ईश्वर मुझे दे देता !
कि ईश्वर प्रसन्न होकर मुझे कुचल डालता, और हाथ बढ़ाकर मुझे काट डालता !
यही मेरी शान्ति का कारण; वरन भारी पीड़ा में भी मैं इस कारण से उछल पड़ता; क्योंकि मैं ने उस पवित्रा के वचनों का कभी इनकार नहीं किया।
मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूं? और मेरा अन्त ही क्या होगा, कि मैं धीरज धरूं?
क्या मेरी दृढ़ता पत्थरों की सी है? क्या मेरा शरीर पीतल का है?
क्या मैं निराधार नहीं हूँ? क्या काम करने की शक्ति मुझ से दूर नहीं हो गई?
जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह सर्वशक्तिमान का भय मानना छोड़ देता है।
मेरे भाई नाले के समान विश्वासघाती हो गए हैं, वरन उन नालों के समान जिनकी धार सूख जाती है;
और वे बरफ के कारण काले से हो जाते हैं, और उन में हिम छिपा रहता है।
परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएं लोप हो जाती हैं, और जब कड़ी धूप पड़ती है तब वे अपनी जगह से उड़ जाते हैं
वे घूमते घूमते सूख जातीं, और सुनसान स्थान में बहकर नाश होती हैं।
तेमा के बनजारे देखते रहे और शबा के काफिलेवालों ने उनका रास्ता देखा।
वे लज्जित हुए क्योंकि उन्हों ने भरोसा रखा था और वहां पहुचकर उनके मुंह सूख गए।
उसी प्रकार अब तुम भी कुछ न रहे; मेरी विपत्ति देखकर तुम डर गए हो।
क्या मैं ने तुम से कहा था, कि मुझे कुछ दो? वा उपनी सम्पत्ति में से मेरे लिये घूस दो?
वा मुझे सतानेवाले के हाथ से बचाओ? वा उपद्रव करनेवालों के वश से छुड़ा लो?
मुझे शिक्षा दो और मैं चुप रहूंगा; और मुझे समझाओ, कि मैं ने किस बान में चूक की है।
सच्चाई के वचनों में कितना प्रभाव होता है, परन्तु तुम्हारे विवाद से क्या लाभ होता है?
क्या तुम बातें पकड़ने की कल्पना करते हो? निराश जन की बातें तो वायु की सी हैं।
तुम अनाथों पर चिट्ठी डालते, और अपने मित्रा को बेचकर लाभ उठानेवाले हो।
इसलिये अब कृपा करके मुझे देखो; निश्चय मैं तुम्हारे साम्हने कदापि झूठ न बोलूंगा।
फिर कुछ अन्याय न होने पाए; फिर इस मुक़ मे में मेरा धर्म ज्यों का त्यों बना है, मैं सत्य पर हूँ।
क्या मेरे वचनों में कुछ कुटिलता है? क्या मैं दुष्टता नहीं पहचान सकता?

7

क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते?
जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, वा मजदूर अपनी मजदूरी की आशा रखे;
वैसा ही मैं अनर्थ के महीनों का स्वामी बनाया गया हूँ, और मेरे लिये क्लेश से भरी रातें ठहराई गई हैं।
जब मैं लेट लाता, तब कहता हूँ, मैं कब उठूंगा? और रात कब बीतेगी? और पौ फटने तक छटपटाते छटपटाते उकता जाता हूँ।
मेरी देह कीड़ों और और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है; मेरा चमड़ा सिमट जाता, और फिर गल जाता है।
मेरे दिन जुलाहे की धड़की से अधिक फुत से चलनेवाले हैं और निराशा में बीते जाते हैं।
याद कर कि मेरा जीवन वायु ही है; और मैं अपनी आंखों से कल्याण फिर न देखूंगा।
जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूंगा; तेरी आंखें मेरी ओर होंगी परन्तु मैं न मिलूंगा।
जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है, वैसे ही अधोलोक में उतरनेवाला फिर वहां से नहीं लौट सकता;
वह अपने घर को फिर लौट न आएगा, और न अपने स्थान में फिर मिलेगा।
इसलिये मैं अपना मुंह बन्द न रखूंगा; अपने मन का खेद खोलकर कहूंगा; और अपने जीव की कड़ुवाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूंगा।
क्या मैं समुद्र हूँ, वा मगरमच्छ हूँ, कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है?
जब जब मैं सोचता हूं कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी, और बिछौने पर मेरा खेद कुछ हलका होगा;
तब तब तू मुझे स्वप्नों से घबरा देता, और दर्शनों से भयभीत कर देता है;
यहां तक कि मेरा जी फांसी को, और जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है।
मुझे अपने जीवन से घृणा आती है; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता। मेरा जीवनकाल सांस सा है, इसलिये मुझे छोड़ दे।
मनुष्य क्या है, कि तू उसे महत्व दे, और अपना मन उस पर लगाए,
और प्रति भोर को उसकी सुधि ले, और प्रति क्षण उसे जांचता रहे?
तू कब तक मेरी ओर आंख लगाए रहेगा, और इतनी देर के लिये भी मुझे न छोड़ेगा कि मैं अपना थूक निगल लूं?
हे मनुष्यों के ताकनेवाले, मैं ने पाप तो किया होगा, तो मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा? तू ने क्यों मुझ को अपना निशाना बना लिया है, यहां तक कि मैं अपने ऊपर आपही बोझ हुआ हूँ?
और तू क्यों मेरा अपराध क्षमा नहीं करता? और मेरा अधर्म क्यों दूर नहीं करता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊंगा, और तू मुझे यत्न से ढूंढ़ेगा पर मेरा पता नहीं मिलेगा।

8

तब शूही बिलदद ने कहा,
तू कब तक ऐसी ऐसी बातें करता रहेगा? और तेरे मुंह की बातें कब तक प्रचणड वायु सी रहेगी?
क्या ईश्वर अन्याय करता है? और क्या सर्वशक्तिमान धर्म को उलटा करता है?
यदि तेरे लड़केबालों ने उसके विरूद्ध पाप किया है, तो उस ने उनको उनके अपराध का फल भुगताया है।
तौभी यदि तू आप ईश्वर को यत्न से ढूंढ़ता, और सर्वशक्तिमान से गिड़गिड़ाकर बिनती करता,
और यदि तू निर्मल और धम रहता, तो निश्चय वह तेरे लिये जागता; और तेरी धर्मिकता का निवास फिर ज्यों का त्यों कर देता।
चाहे तेरा भाग पहिले छोटा ही रहा हो परन्तु अन्त में तेरी बहुत बढती होती।
अगली पीढ़ी के लोगों से तो पूछ, और जो कुछ उनके पुरखाओं ने जांच पड़ताल की है उस पर ध्यान दे।
क्योंकि हम तो कल ही के हैं, और कुछ नहीं जानते; और पृथ्वी पर हमारे दिन छाया की नाई बीतते जाते हैं।
क्या वे लोग तुझ से शिक्षा की बातें न कहेंगे? क्या वे अपने मन से बात न निकालेंगे?
क्या कछार की घास पानी बिना बढ़ सकती है? क्या सरकणडा कीच बिना बढ़ता है?
चाहे वह हरी हो, और काटी भी न गई हो, तौभी वह और सब भांति की घास से पहिले ही सूख जाती है।
ईश्वर के सब बिसरानेवालों की गति ऐसी ही होती है और भक्तिहीन की आशा टूट जाती है।
उसकी आश का मूल कट जाता है; और जिसका वह भरोसा करता है, वह मकड़ी का जाला ठहराता है।
चाहे वह अपने घर पर टेक लगाए परन्तु वह न ठहरेगा; वह उसे दृढ़ता से थांभेगा परन्तु वह स्थ्रि न रहेगा।
वह चूप पाकर हरा भरा हो जाता है, और उसकी डालियां बगीचे में चारों ओर फैलती हैं।
उसकी जड़ कंकरों के ढेर में लिपटी हुई रहती है, और वह पत्त्र के स्थान को देख लेता है।
परन्तु जब वह अपने स्थान पर से नाश किया जाए, तब वह स्थान उस से यह कहकर मुंह मोड़ लेगा कि मैं ने उसे कभी देखा ही नहीं।
देख, उसकी आनन्द भरी चाल यही है; फिर उसी मिट्टी में से दूसरे उगेंगे।
देख, ईश्वर न तो खरे मनुष्य को निकम्मा जानकर छोड़ देता है, और न बुराई करतेवालों को संभालता है।
वह तो तुझे हंसमुख करेगा; और तुझ से जयजयकार कराएगा।
तेरे वैरी लज्जा का वस्त्रा पहिनेंगे, और दुष्टों का डेरा कहीं रहने न पाएगा।

9

तब अरयूब ने कहा,
मैं निश्चय जानता हूं, कि बात ऐसी ही है; परन्तु मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में क्योंकर धम ठहर सकता है?
चाहे वह उस से मुक़ मा लड़ना भी चाहे तौभी मनुष्य हजार बातों में से एक का भी उत्तर न दे सकेगा।
वह बुध्दिमान और अति सामथ हैे उसके विरोध में हठ करके कौन कभी प्रबल हुआ है?
वह तो पर्वतों को अचानक हटा देता है और उन्हें पता भी नहीं लगता, वह क्रोध में आकर उन्हें उलट पुलट कर देता है।
वह पृथ्वी को हिलाकर उसके स्थान से अलग करता है, और उसके खम्भे कांपने लगते हैं।
उसकी आज्ञा बिना सूर्य उदय होता ही नहीं; और वह तारोंपर मुहर लगाता है;
वह आकाशमणडल को अकेला ही फैलाता है, और समुद्र की ऊंची ऊंची लहरों पर चलता है;
वह सप्तर्षि, मृगशिरा और कचपचिया और दक्खिन के नक्षत्रों का बनानेवाला है।
वह तो ऐसे बड़े कर्म करता है, जिनकी थाह नहीं लगती; और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जा सकते।
देखो, वह मेरे साम्हने से होकर तो चलता है परन्तु मुझको नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूझ ही नहीं पड़ता है।
देखो, जब वह छीनने लगे, तब उसको कौन रोकेगा? कोन उस से कह सकता है कि तू यह क्या करता है?
ईश्वर अपना क्रोध ठंडा नहीं करता। अभिमानी के सहायकों को उसके पांव तले झुकना पड़ता है।
फिर मैं क्या हूं, जो उसे उत्तर दूं, और बातें छांट छांटकर उस से विवाद करूं?
चाहे मैं निदष भी होता परन्तु उसको उत्तर न दे सकता; मैं अपने मु ई से गिड़गिड़ाकर बिनती करता।
चाहे मेरे पुकारने से वह उत्तर भी देता, तौभी मैं इस बात की प्रतीति न करता, कि वह मेरी बात सुनता है।
वह तो आंधी चलाकर मुझे तोड़ डालता है, और बिना कारण मेरे चोट पर चोट लगाता है।
वह मुझे सांस भी लेने नहीं देता है, और मुझे कड़वाहट से भरता है।
जो सामर्थ्य की चर्चा हो, तो देखो, वह बलवान हैे और यदि न्याय की चर्चा हो, तो वह कहेगा मुझ से कौन मुक़ मा लड़ेगा?
चाहे मैं निदष ही क्यों न हूँ, परन्तु अपने ही मुंह से दोषी ठहरूंगा; खरा होने पर भी वह मुझे कुटिल ठहराएगा।
मैं खरा तो हूँ, परन्तु अपना भेद नहीं जानता; अपने जीवन से मुझे घृण आती है।
बात तो एक ही है, इस से मैं यह कहता हूँ कि ईश्वर खरे और दुष्ट दोनों को नाश करता है।
जब लोग विपत्ति से अचानक मरने लगते हैं तब वह निदष लोगों के जांचे जाने पर हंसता है।
देश दुष्टों के हाथ में दिया गया है। वह उसके न्यायियों की आंखों को मून्द देता है; इसका करनेवाला वही न हो तो कौन है?
मेरे दिन हरकारे से भी अधिक वेग से चले जाते हैं; वे भागे जाते हैं और उनको कल्याण कुछ भी दिखाई नहीं देता।
वे वेग चाल से नावों की नाई चले जाते हैं, वा अहेर पर झपटते हुए उक़ाब की नाई।
जो मैं कहूं, कि विलाप करना झूल जाऊंगा, और उदासी छोड़कर अपना मन प्रफुल्लित कर दूंगा,
तब मैं अपने सब दुखों से डरता हूँ। मैं तो जानता हूँ, कि तू मुझे निदष न ठहराएगा।
मैं तो दोषी ठहरूंगा; फिर व्यर्थ क्यों परिश्रम करूं?
चाहे मैं हिम के जल में स्नान करूं, और अपने हाथ खार से निर्मल करूं,
तैभी तू मुझे गड़हे में डाल ही देगा, और मेरे वस्त्रा भी मुझ से घिनाएंगे।
क्योंकि वह मेरे तुल्य मनुष्य नहीं है कि मैं उस से वादविवाद कर सकूं, और हम दोनों एक दूसरे से मुक़ मा लड़ सकें।
हम दोनों के बीच कोई बिचवई नहीं है, जो हम दोंनों पर अपना हाथ रखे।
वह अपना सोंटा मुझ पर से दूर करे और उसकी भय देनेवाली बात मुझे न घबराए।
तब मैं उस से निडर होकर कुछ कह सकूंगा, क्योंकि मैं अपनी दृष्टि में ऐसा नहीं हूँ।

10

मेरा प्राण जीवित रहने से उकताता है; मैं स्वतंत्राता पूर्वक कुड़कुड़ाऊंगा; और मैं अपने मन की कड़वाहट के मारे बातें करूंगा।
मै ईश्वर से कहूंगा, मुझे दोषी न ठहरा; मुझे बता दे, कि तू किस कारण मूझ से मुक़ मा लड़ता है?
क्या तुझे अन्धेर करना, और दुष्टों की युक्ति को सुफल करके अपने हाथों के बनाए हुए को निकम्मा जानना भला लगता है?
क्या तेरी देश्धारियों की सी बांखें है? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है?
क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, वा तेरे वर्ष पुरूष के समयों के तुल्य हैं,
कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है?
तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूँ, और तेरे हाथ से कोई छुड़ानेवाला नहीं !
तू ने अपने हाथों से मुझे ठीक रचा है और जोड़कर बनाया है; तौभी मुझे नाश किए डालता है।
स्मरण कर, कि तू ने मुझ को गून्धी हुई मिट्टी की नाई बनाया, क्या तू मुझे फिर धूल में मिलाएगा?
क्या तू ने मुझे दूध की नाई उंडेलकर, और दही के समान जमाकर नहीं बनाया?
फिर तू ने मुझ पर चमड़ा और मांस चढ़ाया और हडि्डयां और नसें गूंथकर मुझे बनाया है।
तू ने मुझे जीवन दिया, और मुझ पर करूणा की है; और तेरी चौकसी से मेरे प्राण की रक्षा हई है।
तौभी तू ने ऐसी बातों को अपने मन में छिपा रखा; मैं तो जान गया, कि तू ने ऐसा ही करने को ठाना था।
जो मैं पाप करूं, तो तू उसका लेखा लेगा; और अधर्म करने पर मुझे निदष न ठहराएगा।
जो मैं दुष्टता करूं तो मुझ पर हाय ! और जो मैं धम बनूं तौभी मैं सिर न उठाऊंगा, क्योंकि मैं अपमान से भरा हुआ हूं और अपने दु:ख पर ध्यान रखता हूँ।
और चाहे सिर उठाऊं तौभी तू सिंह की नाई मेरा अहेर करता है, और फिर मेरे विरूद्ध आश्चर्यकर्म करता है।
तू मेरे साम्हने अपने नये नये साक्षी ले आता है, और मुझ पर अपना क्रोध बढ़ाता है; और मुझ पर सेना पर सेना चढ़ाई करती है।
तू ने मुझे गर्भ से क्यों निकाला? नहीं तो मैं वहीं प्राण छोड़ता, और कोई मुझे देखने भी न पाता।
मेरा होना न होने के समान होता, और पेट ही से क़ब्र को पहुंचाया जाता।
क्या मेरे दिन थोड़े नहीं? मुझे छोड़ दे, और मेरी ओर से मुंह फेर ले, कि मेरा मन थोड़ा शान्त हो जाए
इस से पहिले कि मैं वहां जाऊं, जहां से फिर न लौटूंगा, अर्थात् अन्धियारे और धोर अन्धकार के देश में, जहां अन्धकार ही अन्धकार है;
और मृत्यु के अन्धकार का देश जिस में सब कुछ गड़बड़ है; और जहां प्रकाश भी ऐसा है जैसा अन्धकार।

11

तब नामाती सोपर ने कहो
बहुत सी बातें जो कही गई हैं, क्या उनका उत्तर देना न चाहिये? क्या बकवादी मनुष्य धम ठहराया जाए?
क्या तेरे बड़े बोल के कारण लोग चुप रहें? और जब तू ठट्ठा करता है, तो क्या कोई तुझे लज्जित न करे?
तू तो यह कहता है कि मेरा सिठ्ठान्त शुठ्ठ है और मैं ईश्वर की दृष्टि में पवित्रा हूँ।
परन्तु भला हो, कि ईश्वर स्वयं बातें करें, और तेरे विरूद्ध मुंह खोले,
और तुझ पर बुध्दि की गुप्त बातें प्रगट करे, कि उनका मर्म तेरी बुध्दि से बढ़कर है। इसलिये जान ले, कि ईश्वर तेरे अधर्म में से बहुत कुछ भूल जाता है।
क्या तू ईश्वर का गूढ़ भेद पा सकता है? और क्या तू सर्वशक्तिमान का मर्म पूरी रीति से चांच सकता है?
वह आकाश सा ऊंचा है; तू क्या कर सकता है? वह अधोलोक से गहिरा है, तू कहां समझ सकता है?
उसकी माप पृथ्वी से भी लम्बी है और समुद्र से चौड़ी है।
जब ईश्वर बीच से गुजरकर बन्द कर दे और अदालत में बुलाए, तो कौन उसको रोक सकता है।
क्योंकि वह पाखणडी मनुष्यों का भेद जानता है, और अनर्थ काम को बिना सोच विचार किए भी जान लेता है।
पनन्तु मनुष्य छूछा और निर्बुध्दि होता है; क्योंकि मनुष्य जन्म ही से जंगली गदहे के बच्चे के समान होता है।
यदि तू अपना मन शुठ्ठ करे, और ईश्वर की ओर अपने हाथ फैलाए,
और जो कोई अनर्थ काम तुझ से होता हो उसे दूर करे, और अपने डेरों में कोई कुटिलता न रहने दे,
तब तो तू निश्चय अपना मुंह निष्कलंक दिखा सकेगा; और तू स्थ्रि होकर कभी न डरेगा।
तब तू अपना दु:ख भूल जाएगा, तू उसे उस पानी के समान स्मरण करेगा जो बह गया हो।
और तेरा जीवन दोपहर से भी अधिक प्रकाशमान होगा; और चाहे अन्धेरा भी हो तौभी वह भोर सा हो जाएगा।
और तुझे आशा होगी, इस कारण तू निर्भय रहेगा; और अपने चारों ओर देख देखकर तू निर्भय विश्राम कर सकेगा।
और जब तू लेटेगा, तब कोई तुझे डराएगा नहीं; और बहुतेरे तुझे प्रसन्न करते का यत्न करेंगे।
परन्तु दुष्ट लोगों की आंखें रह जाएंगी, और उन्हें कोई शरूण स्थान न मिलेगा और उनकी आशा यही होगी कि प्राण निकल जाए।

12

तब अरयूब ने कहा;
निेसन्देह मनुष्य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुध्दि भी जाती रहेगी।
परन्तु तुम्हारी नाई मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगों से कुछ तीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो?
मैं ईश्वर से प्रार्थना करता था, और वह मेरी सुन दिया करता था; परन्तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हंसते हैं; जो धम और खरा मनुष्य है, वह हंसी का कारण हो गया है।
दु:खी लोग तो सुखियों की समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पांव फिसला चाहते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है।
डाकुओं के डेरे कुशल क्षेम से रहते हैं, और जो ईश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; और उनके हाथ में ईश्वर बहुत देता है।
पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएंगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बता देंगे।
पृथ्वी पर ध्यान दे, तब उस से तुझे शिक्षा मिलेगी; ओर समुद्र की मछलियां भी तुझ से वर्णन करेंगी।
कौन इन बातों को नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपने हाथ से इस संसार को बनाया है।
उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है।
जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते?
बूढ़ां में बुध्दि पाई जाती है, और लम्बी आयुवालों में समझ होती तो है।
ईश्वर में पूरी बुध्दि और पराक्रम पाए जाते हैं; युक्ति और समझ उसी में हैं।
देखो, जिसको वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्य को वह बन्द करे, वह फिर खोला नहीं जाता।
देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृथ्वी उलट जाती है।
उस में सामर्थ्य और खरी बुध्दि पाई जाती है; धोख देनेवाला और धोखा खानेवाला दोनों उसी के हैं।
वह मंत्रियों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता, और न्यायियों को मूर्ख बना देता है।
वह राजाओं का अधिकार तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्धन बन्धवाता है।
वह याजकों को लूटकर बन्धुआई में ले जाता और सामर्थियों को उलट देता है।
वह विश्वासयोेग्य पुरूषों से बोलने की शक्ति और पुरनियों से विवेक की शक्ति हर लेता है।
वह हाकिमों को अपमान से लादता, और बलवानों के हाथ ढीले कर देता है।
वह अन्धियारे की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है।
वह जातियों को बढ़ाता, और उनको नाश करता है; वह उनको फैलाता, और बन्धुआई में ले जाता है।
वह पृथ्वी के मुख्य लोगों की बुध्दि उड़ा देता, और उनको निर्जन स्थानों में जहां रास्ता नहीं है, भटकाता है।
वे बिन उजियाले के अन्धेरे में टटोलते फिरते हैं; और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि वे मतवाले की नाई डगमगाते हुए चलते हैं।

13

सुनो, मैं यह सब कुछ अपनी आंख से देख चुका, और अपने कान से सुन चुका, और समझ भी चुका हूँ।
जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ; मैं तुम लोगों से कुछ कम नहीं हूँ।
मैं तो सर्वशक्तिमान से बातें करूंगा, और मेरी अभिलाषा ईश्वर से वादविवाद करने की है।
परन्तु तुम लोग झूठी बात के गढ़नेवाले हो; तुम सबके सब निकम्मे वैद्य हो।
भला होता, कि तुम बिलकुल चुप रहते, और इस से तुम बुध्दिमान ठहरते।
मेरा विवाद सुनो, और मेरी बहस की बातों पर कान लगाओ।
क्या तुम ईश्वर के निमित्त टेढ़ी बातें कहोगे, और उसके पक्ष में कपट से बोलोगे?
क्या तुम उसका पक्षपात करोगे? और ईश्वर के लिये मुक मा चलाओगे।
क्या यह भला होगा, कि वह तुम को जांचे? क्या जैसा कोई मनुष्य को धोखा दे, वैसा ही तुम क्या उसको भी धेखा दोगे?
जो तुम छिपकर पक्षपात करो, तो वह निश्चय तुम को डांटेगा।
क्या तुम उसके माहात्म्य से भय न खाओगे? क्या उसका डर तुम्हारे मन में न समाएगा?
तुम्हारे स्मरणयोग्य नीतिवचन राख के समान हैं; तुम्हारे कोट मिट्टी ही के ठहरे हैंे
मुझ से बात करना छोड़ो, कि मैं भी कुछ कहने पाऊं; फिर मुझ पर जो चाहे वह आ पड़े।
मैं क्यों अपना मांस अपने दांतों से चबाऊं? और क्यों अपना प्राण हथेली पर रखूं?
वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं; तौभी मैं अपनी चाल चलन का पक्ष लूंगा।
और यह भी मेरे बचाव का कारण होगा, कि भक्तिहीन जन उसके साम्हने नहीं जा सकता।
चित्त लगाकर मेरी बात सुनो, और मेरी बिनती तुम्हारे कान में पड़े।
देखो, मैं ने अपने बहस की पूरी तैयारी की है; मुझे निश्चय है कि मैं निदष ठहरूंगा।
कौन है जो मुझ से मुक मा लड़ सकेगा? ऐसा कोई पाया जाए, तो मैं चुप होकर प्राण छोडूंगा।
दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूंगो
अपनी ताड़ना मुझ से दूर कर ले, और अपने भय से मुझे भयभीत न कर।
तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूंगा; नहीं तो मैं प्रश्न करूंगा, और तू मुझे उत्तर दे।
मुझ से कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं? मेरे अपराध और पाप मुझे जता दे।
तू किस कारण अपना मुंह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है?
क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कंपाएगा? और सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?
तू मेरे लिये कठिन दु:खों की आज्ञा देता है, और मेरी जवानी के अधर्म का फल मुझे भुगता देता है।
और मेरे पांवों को काठ में ठोंकता, और मेरी सारी चाल चलन देखता रहता है; और मेरे पांवों की चारों ओर सीमा बान्ध लेता है।
और मैं सड़ी गली वस्तु के तुल्य हूं जो नाश हो जाती है, और कीड़ा खाए कपड़े के तुल्य हूँ।

14

मनुष्य जो स्त्री से उत्मन्न होता है, वह थेड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है।
वह फूल की नाई खिलता, फिर तोड़ा जाता हे; वह छाया की रीति पर ढल जाता, और कहीं ठहरता नहीं।
फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है? क्या तू मुझे अपने साथ कचहरी में घसीटता है?
अशुठ्ठ वस्तु से शुठ्ठ वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं, और उसके महीनों की गिनती तेरे पास लिखी है, और तू ने उसके लिये ऐसा सिवाना बान्धा है जिसे वह पार नहीं कर सकता,
इस कारण उस से अपना मुंह फेर ले, कि वह आराम करे, जब तक कि वह मजदूर की नाई अपना दिन पूरा न कर ले।
वुक्ष की तो आशा रहती है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी फिर पनपेगा और उस से नर्म नर्म डालियां निकलती ही रहेंगी।
चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूंठ मिट्टी में सूख भी जाए,
तौभी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे की नाई उस से शाखाएं फूटेंगी।
परन्तु पुरूष मर जाता, और पड़ा रहता है; जब उसका प्राण छूट गया, तब वह कहां रहा?
जैसे नील नदी का जल घट जाता है, और जैसे महानद का जल सूखते सूखते सूख जाता है,
वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता; जब तक आकाश बना रहेगा तब तक वह न जागेगा, और न उसकी नींद टूटेगी।
भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंढा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिये समय नियुक्त करके फिर मेरी सुधि लेता।
यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छूटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता।
तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती।
परन्तु अब तू मेरे पग पग को गिनता है, क्या तू मेरे पाप की ताक में लगा नहीं रहता?
मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं, और तू ने मेरे अधर्म को सी रखा है।
और निश्चय पहाड़ भी गिरते गिरते नाश हो जाता है, और चट्टान अपने स्थान से हट जाती है;
और पत्थर जल से घिस जाते हैं, और भूमि की धूलि उसकी बाढ़ से बहाई जाती है; उसी प्रकार तू मनुष्य की आशा को मिटा देता है।
तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है; तू उसका चिहरा बिगाड़कर उसे निकाल देता है।
उसके पुत्रों की बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूझता; और उनकी घटी होती है, परन्तु वह उनका हाल नहीं जानता।
केवल अपने ही कारण उसकी देी को दु:ख होता है; और अपने ही कारण उसका प्राण अन्दर ही अन्दर शोकित रहता है।

15

तब तेमानी एलीपज ने कहा,
क्या बुध्दिमान को उचित है कि अज्ञानता के साथ उत्तर दे, वा उपने अन्तेकरण को पूरबी पवन से भरे?
क्या वह निष्फल वचनों से, वा व्यर्थ बातों से वादविवाद करे?
वरन तू भय मानना छोड़ देता, और ईश्वर का ध्यान करना औरों से छुड़ाता है।
तू अपने मुंह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त्त लोगों के बोलने की रीति पर बोलता है।
मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुंह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरूद्ध साक्षी देते हैं।
क्या पहिला मतुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ों से भी पहिले हुई?
क्या तू ईश्वर की सभा में बैठा सुनता था? क्या बुध्दि का ठीका तू ही ने ले रखा है?
तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं?
हम लोगों में तो पक्के बालवाले और अति पुरनिये मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं।
ईश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिये कोमल हैं, क्या ये तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं?
तेरा मन क्यों तुझे खींच ले जाता है? और तू आंख से क्यों सैन करता है?
तू भी अपनी आत्मा ईश्वर के विरूद्ध करता है, और अपने मुंह से व्यर्थ बातें निकलने देता है।
मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निदष हो सके?
देख, वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है।
फिर मनुष्य अधिक घिनौना और मलीन है जो कुटिलता को पानी की नाई पीता है।
मैं तुझे समझा दूंगा, इसलिये मेरी सुन ले, जो मैं ने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ।
(वे ही बातें जो बुध्दिमानों ने अपने पुरखाओं से सुनकर बिना छिपाए बताया है।
केवल उन्हीं को देश दिया गया था, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता जाता नहीं था।)
दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और बलात्कारी के वष की गिनती ठहराई हुई है।
उसके कान में डरावना शब्द गूंजता रहता है, कुशल के समय भी नाशक उस पर आ पड़ता है।
उसे अन्ध्यिारे में से फिर निकलने की कुछ आशा नहीं होती, और तलवार उसकी घात में रहती है।
वह रोटी के लिये मारा मारा फिरता है, कि कहां मिलेगी। उसे निश्चय रहता है, कि अन्धकार का दिन मेरे पास ही है।
संकट और दुर्घटना से असको डर लगता रहता है, ऐसे राजा की नाई जो युठ्ठ के लिये तैयार हो, वे उस पर प्रबल होते हैं।
उस ने तो ईश्वर के विरूद्ध हाथ बढ़ाया है, और सर्वशक्तिमान के विरूद्ध वह ताल ठोंकता है,
और सिर उठाकर और अपनी मोटी मोटी ढालें दिखाता हुआ घमणड से उस पर धावा करता है;
इसलिये कि उसके मुंह पर चिकनाई छा गई है, और उसकी कमर में चब जमी है।
और वह उजाड़े हुए नगरों में बस गया है, और जो घर रहने योग्य नहीं, और खणडहर होने को छोड़े गए हैं, उन में बस गया है।
वह धनी न रहेगा, और न उसकी सम्पत्ति बनी रहेगी, और ऐसे लोगों के खेत की उपज भूमि की ओर न भुकने पाएगी।
वह अन्धियारे से कभी न निकलेगा, और उसकी डालियां आग की लपट से झुलस जाएंगी, और ईश्वर के मुंह की श्वास से वह उड़ जाएगा।
वह अपने को धोखा देकर व्यर्थ बातों का भरोसा न करे, क्योंकि उसका बदला धोखा ही होगा।
वह उसके नियत दिन से पहिले पूरा हो जाएगा; उसकी डालियां हरी न रहेंगी।
दाख की नाई उसके कच्चे फल झड़ जाएंगे, और उसके फूल जलपाई के वृक्ष के से गिरेंगे।
क्योंकि भक्तिहीन के परिवार से कुछ बन न पड़ेगा, और जो घूस लेते हैं, उनके तम्बू आग से जल जाएंगे।
उनके उपद्रव का पेट रहता, और अनर्थ उत्पन्न होता हैे और वे अपने अन्तेकरण में छल की बातें गढ़ते हैं।

16

तब अरयूब ने कहा,
ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे शान्तिदाता हो।
क्या व्यर्थ बातों का अन्त कभी होगा? तू कौन सी बात से झिड़ककर उत्तर देता।
जो तुम्हारी दशा मेरी सी होती, तो मैं भी तुम्हारी सी बातें कर सकता; मैं भी तुम्हारे विरूद्ध बातें जोड़ सकता, और तुम्हारे विरूद्ध सिर हिला सकता।
वरन मैं अपने वचनों से तुम को हियाव दिलाता, और बातों से शान्ति देकर तुम्हारा शोक घटा देता।
चाहे मैं बोलूं तौभी मेरा शोक न घटेगा, चाहे मैं चुप रहूं, तौभी मेरा दु:ख कुछ कम न होगा।
परन्तु अब उस ने पुझे उकता दिया है; उस ने मेरे सारे परिवार को उजाड़ डाला है।
और उस ने जो मेरे शरीर को सुखा डाला है, वह मेरे विरूद्ध साक्षी ठहरा है, और मेरा दुबलापन मेरे विरूद्ध खड़ा होकर मेरे साम्हने साक्षी देता है।
उस ने क्रोध में आकर मुझ को फाड़ा और मेरे पीछे पड़ा है; वह मेरे विरूद्ध दांत पीसता; और मेरा वैरी मुझ को आंखें दिखाता है।
अब लोग मुझ पर मुंह पसारते हैं, और मेरी नामधराई करके मेरे गाल पर थपेड़ा मारते, और मेरे विरूद्ध भीड़ लगाते हैं।
ईश्वर ने मुझे कुटिलों के वश में कर दिया, और दुष्ट लोगों के हाथ में फेंक दिया है।
मैं सुख से रहता था, और उस ने मुझे चूर चूर कर डाला; उस ने मेरी गर्दन पकड़कर मुझे टुकड़े टुकड़े कर दिया; फिर उस ने पुझे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है।
उसके तीर मेरे चारों ओर उड़ रहे हैं, वह निर्दय होकर मेरे गुद को बेधता है, और मेरा मित्त भूमि पर बहाता है।
वह शूर की नाई मुझ पर धावा करके मुझे चोट पर चोट पहुंचाकर घायल करता है।
मैं ने अपनी खाल पर टाट को सी लिया है, और अपना सींग मिट्टी में मैला कर दिया है।
रोते रोते मेरा मुंह सूज गया है, और मेरी आंखों पर घोर अन्धकार छा गया है;
तौभी मुझ से कोई उपद्रव नहीं हुआ है, और मेरी प्रार्थना पवित्रा है।
हे पृथ्वी, तू मेरे लोहू को न ढांपना, और मेरी दोहाई कहीं न रूके।
अब भी स्वर्ग में मेरा साक्षी है, और मेरा गवाह ऊपर है।
मेरे मित्रा मुझ से घृणा करते हैं, परन्तु मैं ईश्वर के साम्हने आंसू बहाता हूँ,
कि कोई ईश्वर के विरूद्ध सज्जन का, और आदमी का मुक़ मा उसके पड़ोसी के विरूद्ध लड़े।
क्योंकि थोड़े ही वष के बीतने पर मैं उस मार्ग से चला जाऊंगा, जिस से मैं फिर वापिस न लौटूंगा।

17

मेरा प्राण नाश हुआ चाहता है, मेरे दिन पूरे हो चुके हैं; मेरे लिये कब्र तैयार है।
निश्चय जो मेरे संग हैं वह ठट्ठा करनेवाले हैं, और उनका झगड़ा रगड़ा मुझे लगातार दिखाई देता है।
जमानत दे अपने और मेरे बीच में तू ही जामिन हो; कौन है जो मेरे हाथ पर हाथ मारे?
तू ने इनका मन समझने से रोका है, इस कारण तू इनको प्रबल न करेगा।
जो अपने मित्रों को चुगली खाकर लूटा देता, उसके लड़कों की आंखें रह जाएंगी।
उस ने ऐसा किया कि सब लोग मेरी उपमा देते हैं; और लोग मेरे मुंह पर थूकते हैं।
खेद के मारे मेरी आंखों में घुंघलापन छा गया है, और मेरे सब अंग छाया की नाई हो गए हैं।
इसे देखकर सीधे लोग चकित होते हैं, और जो निदष हैं, वह भक्तिहीन के विरूद्ध उभरते हैं।
तौभी धम लोग अपना मार्ग पकड़े रहेंगे, और शुठ्ठ काम करनेवाले सामर्थ्य पर सामर्थ्य पाते जाएंगे।
तुम सब के सब मेरे पास आओ तो आओ, परन्तु मुझे तुम लोगों में एक भी बुध्दिमान न मिलेगा।
मेरे दिन तो बीत चुके, और मेरी मनसाएं मिट गई, और जो मेरे मन में था, वह नाश हुआ है।
वे रात को दिन ठहराते; वे कहते हैं, अन्धियारे के निकट उजियाला है।
यदि मेरी आश यह हो कि अधोलोक मेरा धाम होगा, यदि मैं ने अन्धियारे में अपना बिछौना बिछा लिया है,
यदि मैं ने सड़ाहट से कहा कि तू मेरा पिता है, और कीड़े से, कि तू मेरी मां, और मेरी बहिन है,
तो मेरी आशा कहां रही? और मेरी आशा किस के देखने में आएगी?
वह तो अधोलोक में उतर जाएगी, और उस समेत मुझे भी मिट्टी में विश्राम मिलेगा।

18

तब शूही बिल्दद ने कहा,
तुम कब तक फन्दे लगा लगाकर वचन पकड़ते रहोगे? चित्त लगाओ, तब हम बोलेंगे।
हम लोग तुम्हारी दृष्टि में क्यों पशु के तुल्य समझे जाते, और अशुठ्ठ ठहरे हैं।
हे अपने को क्रोध में फाड़नेवाले क्या तेरे निमित्त पृथ्वी उजड़ जाएगी, और चट्टान अपने स्थान से हट जाएगी?
तौभी दुष्टों का दीपक बुझ जाएगा, और उसकी आग की लौ न चमकेगी।
उसके डेरे में का उजियाला अन्धेरा हो जाएगा, और उसके ऊपर का दिया बुझ जाएगा।
उसके बड़े बड़े फाल छोटे हो जाएंगे और वह अपनी ही युक्ति के द्वारा गिरेगा।
वह अपना ही पांव जाल में फंसाएगा, वह फन्दों पर चलता है।
उसकी एड़ी फन्दे में फंस जाएगी, और वह जाल में पकड़ा जाएगा।
फन्दे की रस्सियां उसके लिये भूमि में, और जाल रास्ते में छिपा दिया गया है।
चारों ओर से डरावनी वस्तुएं उसे डराएंगी और उसके पीछे पड़कर उसको भगाएंगी।
उसका बल दु:ख से घट जाएगा, और विपत्ति उसके पास ही तैयार रहेगी।
वह उसके अंग को खा जाएगी, वरन काल का पहिलौठा उसके अंगों को खा लेगा।
अपने जिस डेरे का भरोसा वह करता है, उस से वह छीन लिया जाएगा; और वह भयंकरता के राजा के पास पहुंचाया जाएगा।
जो उसके यहां का नहीं है वह उसके डेरे में वास करेगा, और उसके घर पर गन्धक छितराई जाएगी।
उसकी जड़ तो सूख जाएगी, और डालियां कट जाएंगी।
पृथ्वी पर से उसका स्मरण मिट जाएगा, और बाज़ार में उसका नाम कभी न सुन पड़ेगा।
वह उजियाले से अन्धियारे में ढकेल दिया जाएगा, और जगत में से भी भगाया जाएगा।
उसके कुटुम्बियों में उसके कोई पुत्रापौत्रा न रहेगा, और जहां वह रहता था, वहां कोई बचा न रहेगा।
उसका दिन देखकर पूरबी लोग चकित होंगे, और पश्चिम के निवासियों के रोएं खड़े हो जाएंगे।
निेसन्देह कुटिल लोगों के निवास ऐसे हो जाते हैं, और जिसको ईश्वर का ज्ञान नहीं रहता उसका स्थान ऐसा ही हो जाता है।

19

तब अरयूब ने कहा,
तुम कब तक मेरे प्राण को दु:ख देते रहोगे; और बातों से मुझे चूर चूर करोगे?
इन दसों बार तुम लोग मेरी निन्दा ही करते रहे, तुम्हें लज्जा नहीं आती, कि तुम मेरे साथ कठोरता का बरताव करते हो?
मान लिया कि मुझ से भूल हुई, तौभी वह भूल तो मेरे ही सिर पर रहेगी।
यदि तुम सचमुच मेरे विरूद्ध अपनी बड़ाई करते हो और प्रमाण देकर मेरी तिन्दा करते हो,
तो यह जान लो कि ईश्वर ने मुझे गिरा दिया है, और मुझे अपने जाल में फंसा लिया है।
देखो, मैं उपद्रव ! उपद्रव ! यों चिल्लाता रहता हूँ, परन्तु कोई नहीं सुनता; मैं सहायता के लिये दोहाई देता रहता हूँ, परन्तु कोई न्याय नहीं करता।
उस ने मेरे मार्ग को ऐसा रूंधा है कि मैं आगे चल नहीं सकता, और मेरी डगरें अन्धेरी कर दी हैं।
मेरा विभव उस ने हर लिया है, और मेरे सिर पर से मुकुट उतार दिया है।
उस ने चारों ओर से मुझे तोड़ दिया, बस मैं जाता रहा, और मेरा आसरा उस ने वृक्ष की नाई उखाड़ डाला है।
उस ने मुझ पर अपना क्रोध भड़काया है और अपने शत्रुओं में मुझे गिनता है।
उसके दल इकट्ठे होकर मेरे विरूद्ध मोर्चा बान्धते हैं, और मेरे डेरे के चारों ओर छावनी डालते हैं।
उस ने मेरे भाइयों को मुझ से दूर किया है, और जो मेरी जान पहचान के थे, वे बिलकुल अनजान हो गए हैं।
मेरे कुटुंबी मुझे छोड़ गए हैं, और जो मुझे जानते थे वह मुझे भूल गए हैं।
जो मेरे घर में रहा करते थे, वे, वरन मेरी दासियां भी मुझे अनजाना गिनने लगीं हैं; उनकी दृष्टि में मैं परदेशी हो गया हूँ।
जब मैं अपने दास को बुलाता हूँ, तब वह नहीं बोलता; मुझे उस से गिड़गिड़ाना पड़ता है।
मेरी सांस मेरी स्त्री को और मेरी गन्ध मेरे भाइयों की दृष्टि में घिनौनी लगती है।
लड़के भी मुझे तुच्छ जानते हैं; और जब मैं उठने लगता, तब वे मेरे विरूद्ध बोलते हैं।
मेरे सब परम मित्रा मुझ से द्वेष रखते हैं, और जिन से मैं ने प्रेम किया सो पलटकर मेरे विरोधी हो गए हैं।
मेरी खाल और मांस मेरी हडि्डयों से सट गए हैं, और मैं बाल बाल बच गया हूं।
हे मेरे मित्रो ! मुझ पर दया करो, दया, क्योंकि ईश्वर ने मुझे मारा है।
तुम ईश्वर की नाई क्यों मेरे पीछे पड़े हो? और मेरे मांस से क्यों तृप्त नहीं हुए?
भला होता, कि मेरी बातें लिखी जातीं; भला होता, कि वे पुस्तक में लिखी जातीं,
और लोहे की टांकी और शीशे से वे सदा के लिये चट्टान पर खोदी जातीं।
मुझे तो निश्चय है, कि मेरा छुड़ानेवाला जीवित है, और वह अन्त में पृथ्वी पर खड़ा होगा।
और अपनी खाल के इस प्रकार नाश हो जाने के बाद भी, मैं शरीर में होकर ईश्वर का दर्शन पाऊंगा।
उसका दर्शन मैं आप अपनी आंखों से अपने लिये करूंगा, और न कोई दूसरा। यद्यपि मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर चूर चूर भी हो जाए,
तौभी मुझ में तो धर्म का मूल पाया जाता है ! और तुम जो कहते हो हम इसको क्योंकर सताएं !
तो तुम तलवार से डरो, क्योंकि जलजलाहट से तलवार का दणड मिलता है, जिस से तुम जान लो कि न्याय होता है।

20

तब नामाती सोपर ने कहा,
मेरा जी चाहता है कि उत्तर दूं, और इसलिये बोलने में फुत करता हूँ।
मैं ने ऐसी चितौनी सुनी जिस से मेरी निन्दा हुई, और मेरी आत्मा अपनी समझ के अनुसार तुझे उत्तर देती है।
क्या तू यह नियम नहीं जानता जो प्राचीन और उस समय का है, जब मनुष्य पृथ्वी पर बसाया गया,
कि दुष्टों का ताली बजाना जल्दी बन्द हो जाता और भक्तिहीनों का आनन्द पल भर का होता है?
चाहे ऐसे मनुष्य का माहात्म्य आकाश तक पहुंच जाए, और उसका सिर बादलों तक पहुंचे,
तौभी वह अपनी विष्ठा की नाई सदा के लिये नाश हो जाएगा; और जो उसको देखते थे वे पूछेंगे कि वह कहां रहा?
वह स्वप्न की नाई लोप हो जाएगा और किसी को फिर न मिलेगा; रात में देखे हुए रूप की नाई वह रहने न पाएगा।
जिस ने उसको देखा हो फिर उसे न देखेगा, और अपने स्थान पर उसका कुछ पता न रहेगा।
उसके लड़केबाले कंगालों से भी बिनती करेंगे, और वह अपना छीना हुआ माल फेर देगा।
उसकी हडि्डयों में जवानी का बल भरा हुआ है परन्तु वह उसी के साथ मिट्टी में मिल जाएगा।
चाहे बुराई उसको मीठी लगे, और वह उसे अपनी जीभ के नीचे छिपा रखे,
और वह उसे बचा रखे और न छोड़े, वरन उसे अपने तालू के बीच दबा रखे,
तौभी उसका भोजन उसके पेट में पलटेगा, वह उसके अन्दर नाग का सा विष बन जाएगा।
उस ने जो धन निगल लिया है उसे वह फिर उगल देगा; ईश्वर उसे उसके पेट में से निकाल देगा।
वह नागों का विष चूस लेगा, वह करैत के डसने से मर जाएगा।
वह नदियों अर्थात् मधु और दही की नदियों को देखने न पाएगा।
जिसके लिये उस ने परिश्रम किया, उसको उसे लौटा देना पड़ेगा, और वह उसे निगलने न पाएगा; उसकी मोल ली हुई वस्तुओं से जितना आनन्द होना चाहिये, उतना तो उसे न मिलेगा।
क्योंकि उस ने कंगालों को पीसकर छोड़ दिया, उस ने घर को छीन लिया, उसको वह बढ़ाने न पाएगा।
लालसा के मारे उसको कभी शान्ति नहीं मिलती थी, इसलिये वह अपनी कोई मनभावनी वस्तु बचा न सकेगा।
कोई वस्तु उसका कौर बिना हुए न बचती थी; इसलिये उसका कुशल बना न रहेगा
पूरी सम्पत्ति रहते भी वह सकेती में पड़ेगा; तब सब दु:खियों के हाथ उस पर उठेंगे।
ऐसा होगा, कि उसका पेट भरने के लिये ईश्वर अपना क्रोध उस पर भड़काएगा, और रोटी खाने के समय वह उस पर पड़ेगा।
वह लोहे के हथियार से भागेगा, और पीतल के धनुष से मारा जाएगा।
वह उस तीर को खींचकर अपने पेट से निकालेगा, उसकी चमकीली नोंक उसके पित्ते से होकर निकलेगी, भय उस में समाएगा।
उसके गड़े हुए धन पर घोर अन्धकार छा जाएगा। वह ऐसी आग से भस्म होगा, जो मनुष्य की फूंकी हुई न हो; और उसी से उसके डेरे में जो बचा हो वह भी भस्म हो जाएगा।
आकाश उसका अथर्म प्रगट करेगा, और पृथ्वी उसके विरूद्ध खड़ी होगी।
उसके घर की बढ़ती जाती रहेगी, वह उसके क्रोध के दिन बह जाएगी।
परमेश्वर की ओर से दुष्ट मनुष्य का अंश, और उसके लिये ईश्वर का ठहराया हुआ भाग यही है।

21

तब अरयूब ने कहा,
चित्त लगाकर मेरी बात सुनो; और तुम्हारी शान्ति यही ठहरे।
मेरी कुछ तो सहो, कि मैं भी बातें करूं; और जब मैं बातें कर चुकूं, तब पीछे ठट्ठा करना।
क्या मैं किसी मनुष्य की दोहाई देता हूँ? फिर मैं अधीर क्यों न होऊं?
मेरी ओर चित्त लगाकर चकित हो, और अपनी अपनी उंगली दांत तले दबाओ।
जब मैं स्मरण करता तब मैं घबरा जाता हूँ, और मेरी देह में कंपकंपी लगती है।
क्या कारण है कि दुष्ट लोग जीवित रहते हैं, वरन बूढ़े भी हो जाते, और उनका धन बढ़ता जाता है?
उनकी सन्तान उनके संग, और उनके बालबच्चे उनकी आंखों के साम्हने बने रहते हैं।
उनके घर में भयरहित कुशल रहता है, और ईश्वर की छड़ी उन पर नहीं पड़ती।
उनका सांड़ गाभिन करता और चूकता नहीं, उनकी गायें बियाती हैं और बच्चा कभी नहीं गिरातीं।
वे अपने लड़कों को झुणड के झुणड बाहर जाने देते हैं, और उनके बच्चे नाचते हैं।
वे डफ और वीणा बजाते हुए गाते, और बांसुरी के शब्द से आनन्दित होते हैं।
वे अपने दिन सुख से बिताते, और पल भर ही में अधोलोक में उतर जाते हैं।
तौभी वे ईश्वर से कहते थे, कि हम से दूर हो ! तेरी गति जानने की हम को इच्छा नहीं रहती।
सर्वशक्तिमान क्या है, कि हम उसकी सेवा करें? और जो हम उस से बिनती भी करें तो हमें क्या लाभ होगा?
देखो, उनका कुशल उनके हाथ में नहीं रहती, दुष्ट लोगों का विचार मुझ से दूर रहे।
कितनी बार दुष्टों का दीपक बुझ जाता है, और उन पर विपत्ति आ पड़ती है; और ईश्वर क्रोध करके उनके बांट में शोक देता है,
और वे वायु से उड़ाए हुए भूसे की, और बवणडर से उड़ाई हुई भूसी की नाई होते हैं।
ईश्वर उसके अधर्म का दणड उसके लड़केबालों के लिये रख छोड़ता है, वह उसका बदला उसी को दे, ताकि वह जान ले।
दुष्ट अपना नाश अपनी ही आंखों से देखे, और सर्वशक्तिमान की जलजलाहट में से आप पी ले।
क्योंकि जब उसके महीनों की गिनती कट चुकी, तो अपने बादवाले घराने से उसका क्या काम रहा।
क्या ईश्वर को कोई ज्ञान सिखाएगा? वह तो ऊंचे पद पर रहनेवालों का भी न्याय करता है।
कोई तो अपने पूरे बल में बड़े चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है।
उसकी दोहनियां दूध से और उसकी हडि्डयां गूदे से भरी रहती हैं।
और कोई अपने जीव में कुढ़ कुढ़कर बिना सुख भोगे मर जाता है।
वे दोनों बराबर मिट्टी में मिल जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं।
देखो, मैं तुम्हारी कल्पनाएं जानता हूँ, और उन युक्तियों को भी, जो तुम मेरे विषय में अन्याय से करते हो।
तुम कहते तो हो कि रईस का घर कहां रहा? दुष्टों के निवास के डेरे कहां रहे?
परन्तु क्या तुम ने बटोहियों से कभी नहीं पूछा? क्या तुम उनके इस विषय के प्रमाणों से अनजान हो,
कि विपत्ति के दिन के लिये दुर्जन रखा जाता है; और महाप्रलय के समय के लिये ऐसे लोग बचाए जाते हैं?
उसकी चाल उसके मुंह पर कौन कहेगा? और उस ने जो किया है, उसका पलटा कौन देगा?
तौभी वह क़ब्र को पहुंचाया जाता है, और लोग उस क़ब्र की रखवाली रिते रहते हैं।
नाले के ढेले उसको सुखदायक लगते हैं; और जैसे पूर्वकाल के लोग अनगिनित जा चुके, वैसे ही सब मनुष्य उसके बाद भी चले जाएंगे।
तुम्हारे उत्तरों में तो झूठ ही पाया जाता है, इसलिये तुम क्यों मुझे व्यर्थ शान्ति देते हो?

22

तब तेमानी एलीपज ने कहा,
क्या पुरूष से ईश्वर को लाभ पहुंच सकता है? जो बुध्दिमान है, वह अपने ही लाभ का कारण होता है।
क्या तेरे धम होने से सर्वशक्तिमान सुख पा सकता है? तेरी चाल की खराई से क्या उसे कुछ लाभ हो सकता है?
वह तो तुझे डांटता है, और तुझ से मुक मा लड़ता है, तो क्या इस दशा में तेरी भक्ति हो सकती है?
क्या तेरी बुराई बहुत नहीं? तेरे अधर्म के कामों का कुछ अन्त नहीं।
तू ने तो अपने भाई का बन्धक अकारण रख लिया है, और नंगे के वस्त्रा उतार लिये हैं।
थके हुए को तू ने पानी न पिलाया, और भूखे को रोटी देने से इनकार किया।
जो बलवान था उसी को भूमि मिली, और जिस पुरूष की प्रतिष्ठा हुई थी, वही उस में बस गया।
तू ने विधवाओं को छूछे हाथ लौटा दिया। और अनाथों की बाहें तोड़ डाली गई।
इस कारण तेरे चारों ओर फन्दे लगे हैं, और अचानक डर के मारे तू घगरा रहा है।
क्या तू अन्धियारे को नहीं देखता, और उस बाढ़ को जिस में तू डूब रहा है?
क्या ईश्वर स्वर्ग के ऊंचे स्थान में नहीं है? ऊंचे से ऊंचे तारों को देख कि वे कितने ऊंचे हैं।।
फिर तू कहता है कि ईश्वर क्या जानता है? क्या वह घोर अन्धकार की आड़ में होकर न्याय करेगा?
काली घटाओं से वह ऐसा छिपा रहता है कि वह कुछ नहीं देख सकता, वह तो आकाशमणडल ही के ऊपर चलता फिरता है।
क्या तू उस पुराने रास्ते को पकड़े रहेगा, जिस पर वे अनर्थ करनेवाले चलते हैं?
वे अपने समय से पहले उठा लिए गए और उनके घर की नेव नदी बहा ले गई।
उन्हों ने ईश्वर से कहा था, हम से दूर हो जा; और यह कि सर्वशक्तिमान हमारा क्या कर सकता है?
तौभी उस ने उनके घर अच्छे अच्छे पदाथसे भर दिए-- परन्तु दुष्ट लोगों का विचार मुझ से दूर रहे।
धम लेग देखकर आनन्दित होते हैं; और निदष लोग उनकी हंसी करते हैं, कि
जो हमारे विरूद्ध उठे थे, निेसन्देह मिट गए और उनका बड़ा धन आग का कौर हो गया है।
उस से मेलमिलाप कर तब तुझे शान्ति मिलेगी; और इस से तेरी भलाई होगी।
उसके मुंह से शिक्षा सुन ले, और उसके वचन अपने मन में रख।
यदि तू सर्वशक्तिमान की ओर फिरके समीप जाए, और अपने डेरे से कुटिल काम दूर करे, तो तू बन जाएगा।
तू अपनी अनमोल वस्तुओं को धूलि पर, वरन ओपीर का कुन्दन भी नालों के पत्थरों में डाल दे,
तब सर्वशक्तिमान आप तेरी अनमोल वस्तु और तेरे लिये चमकीली चान्दी होगा।
तब तू सर्वशक्तिमान से सुख पाएगा, और ईश्वर की ओर अपना मुंह बेखटके उठा सकेगा।
और तू उस से प्रार्थना करेगा, और वह तेरी सुनेगा; और तू अपनी मन्नतों को पूरी करेगा।
जो बात तू ठाने वह तुझ से बन भी पड़ेगी, और तेरे माग पर प्रकाश रहेगा।
चाहे दुर्भाग्य हो तौभी तू कहेगा कि सुभाग्य होगा, क्योंकि वह नम्र मनुष्य को बचाता है।
वरन जो निदष न हो उसको भी वह बचाता है; तेरे शुठ्ठ कामों के कारण तू छुड़ाया जाएगा।

23

तब अरयूब ने कहा,
मेरी कुड़कुड़ाहट अब भी नहीं रूक सकती, मेरी मार मेरे कराहने से भारी है।
भला होता, कि मैं जानता कि वह कहां मिल सकता है, तब मैं उसके विराजने के स्थान तक जा सकता !
मैं उसके साम्हने अपना मुक़ मा पेश करता, और बहुत से प्रमाण देता।
मैं जान लेता कि वह मुझ से उत्तर में क्या कह सकता है, और जो कुछ वह मुझ से कहता वह मैं समझ लेता।
क्या वह अपना बड़ा बल दिखाकर मुझ से मुक़ मा लड़ता? नहीं, वह मुझ पर ध्यान देता।
सज्जन उस से विवाद कर सकते, और इस रीति मैं अपने न्यायी के हाथ से सदा के लिये छूट जाता।
देखो, मैं आगे जाता हूँ परन्तु वह नहीं मिलता; मैं पीछे हटता हूँ, परन्तु वह दिखाई नहीं पड़ता;
जब वह बाई ओर काम करता है तब वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह तो दहिनी ओर ऐसा छिप जाता है, कि मुझे वह दिखाई ही नहीं पड़ता।
परन्तु वह जानता है, कि मैं कैसी चाल चला हूँ; और जब वह मुझे ता लेगा तब मैं सोने के समान निकलूंगा।
मेरे पैर उसके माग में स्थिर रहे; और मैं उसी का मार्ग बिना मुड़े थामे रहा।
उसकी आज्ञा का पालन करने से मैं न हटा, और मैं ने उसके वचन अपनी इच्छा से कहीं अधिक काम के जानकर सुरक्षित रखे।
परन्तु वह एक ही बात पर अड़ा रहता है, और कौन उसको उस से फिरा सकता है? जो कुछ उसका जी चाहता है वही वह करता है।
जो कुछ मेरे लिये उस ने ठाना है, उसी को वह पूरा करता है; और उसके मन में ऐसी ऐसी बहुत सी बातें हैं।
इस कारण मैं उसके सम्मुख घबरा जाता हूँ; जब मैं सोचता हूँ तब उस से थरथरा उठता हूँ।
क्योंकि मेरा मन ईश्वर ही ने कच्चा कर दिया, और सर्वशक्तिमान ही ने मुझ को असमंजस में डाल दिया है।
इसलिये कि मैं इस अन्धयारे से पहिले काट डाला न गया, और उस ने घोर अन्धकार को मेरे साम्हने से न छिपाया।

24

सर्वशक्तिमान ने समय क्यों नहीं ठहराया, और जो लोग उसका ज्ञान रखते हैं वे उसके दिन क्यों देखने नहीं पाते?
कुछ लोग भूमि की सीमा को बढ़ाते, और भेड़ बकरियां छीनकर चराते हैं।
वे अनाथों का गदहा हांक ले जाते, और विधवा का बैल कन्धक कर रखते हैं।
वे दरिद्र लोगों को मार्ग से हटा देते, और देश के दीनों को इकट्ठे छिपना पड़ता है।
देखो, वे जंगली गदहों की नाई अपने काम को और कुछ भोजन यत्न से ढूंढ़ने को निकल जाते हैं; उनके लड़केबालों का भोजन उनको जंगल से मिलता है।
उनको खेत में चारा काटना, और दुष्टों की बची बचाई दाख बटोरना पड़ता है।
रात को उन्हें बिना वस्त्रा नंगे पड़े रहना और जाड़े के समय बिना ओढ़े पड़े रहना पड़ता है।
वे पहाड़ों पर की झड़ियों से भीगे रहते, और शरण न पाकर चट्टान से लिपट जाते हैं।
कुछ लोग अनाथ बालक को मा की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगों से बन्धक लेते हैं।
जिस से वे बिना वस्त्रा नंगे फिरते हैं; और भूख के मारे, पूलियां ढोते हैं।
वे उनकी भीतों के भीतर तेल पेरते और उनके कुणडों में दाख रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं।
वे बड़े नगर में कराहते हैं, और घायल किए हुओं का जी दोहाई देता है; परन्तु ईश्वर मूर्खता का हिसाब नहीं लेता।
फिर कुछ लोग उजियाले से बैर रखते, वे उसके माग को नहीं पहचानते, और न उसके माग में बने रहते हैं।
खूनी, पह फटते ही उठकर दीन दरिद्र मनुष्य को घात करता, और रात को चोर बन जाता है।
व्यभिचारी यह सोचकर कि कोई मुझ को देखने न पाए, दिन डूबने की राह देखता रहता है, और वह अपना मुंह छिपाए भी रखता है।
वे अन्धियारे के समय घरों में सेंध मारते और दिन को छिपे रहते हैं; वे उजियाले को जानते भी नहीं।
इसलिये उन सभों को भोर का प्रकाश घोर अन्धकार सा जान पड़ता है, क्योंकि घोर अन्धकार का भय वे जानते हैं।
वे जल के ऊपर हलकी वस्तु के सरीखे हैं, उनके भाग को पृथ्वी के रहनेवाले कोसते हैं, और वे अपनी दाख की बारियों में लौटने नहीं पाते।
जैसे सूखे और घाम से हिम का जल सूख जाता है वैसे ही पापी लोग अधोलोक में सूख जाते हैं।
माता भी उसको भूल जाती, और कीड़े उसे चूसते हें, भवीष्य में उसका स्मरण न रहेगा; इस रीति टेढ़ा काम करनेवाला वृक्ष की राई कट जाता है।
वह बांझ स्त्री को जो कभी नहीं जनी लूटता, और विधवा से भलाई करना नहीं चाहता है।
बलात्कारियों को भी ईश्वर अपनी शक्ति से खींच लेता है, जो जीवित रहने की आशा नहीं रखता, वह भी फिर उठ बैठता है।
उन्हें ऐसे बेखटके कर देता है, कि वे सम्भले रहते हैं; और उसकी कृपादृष्टि उनकी चाल पर लगी रहती है।
वे बढ़ते हैं, तब थोड़ी बेर में जाते रहते हैं, वे दबाए जाते और सभों की नाई रख लिये जाते हैं, और अनाज की बाल की नाई काटे जाते हैं।
क्या यह सब सच नहीं ! कौन मुझे झुठलाएगा? कौन मेरी बातें निकम्मी ठहराएगा?

25

तब शूही बिल्दद ने कहा,
प्रभुता करना और डराना यह उसी का काम है; वह अपने ऊंचे ऊंचे स्थानों में शान्ति रखता है।
क्या उसकी सेनाओं की गिनती हो सकती? और कौन है जिस पर उसका प्रकाश नहीं पड़ता?
फिर मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में धम क्योंकर ठहर सकता है? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह क्योंकर निर्मल हो सकता है?
देख, उसकी दृष्टि में चन्द्रमा भी अन्धेरा ठहरता, और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते।
फिर मनुष्य की क्या गिनती जो कीड़ा है, और आदमी कहां रहा जो केंचुआ है !

26

तब अरयूब ने कहा,
निर्बल जन की तू ने क्या ही बड़ी सहायता की, और जिसकी बांह में सामर्थ्य नहीं, उसको तू ने कैसे सम्भाला है?
निर्बुध्दि मनुष्य को तू ने क्या ही अच्छी सम्मति दी, और अपनी खरी बुध्दि कैसी भली भांति प्रगट की है?
तू ने किसके हित के लिये बातें कही? और किसके मन की बातें तेरे मुंह से निकलीं?
बहुत दिन के मरे हुए लोग भी जलनिधि और उसके निवासियों के तले तड़पते हैं।
अधोलोक उसके साम्हने उधड़ा रहता है, और विनाश का स्थान ढंप नहीं सकता।
वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना अेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।
वह जल को अपनी काली घटाओं में बान्ध रखता, और बादल उसके बोझ से नहीं फटता।
वह अपने सिंहासन के साम्हने बादल फैलाकर उसको छिपाए रखता है।
उजियाले और अन्धियारे के बीच जहां सिवाना बंधा है, वहां तक उस ने जलनिधि का सिवाना ठहरा रखा है।
उसकी घुड़की से आकाश के खम्भे थरथराकर चकित होते हैं।
वह अपने बल से समुद्र को उछालता, और अपनी बुध्दि से घपणड को छेद देता है।
उसकी आत्मा से आकाशमणडल स्वच्छ हो जाता है, वह अपने हाथ से वेग भागनेवाले नाग को मार देता है।
देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?

27

अरयूब ने और भी अपनी गूढ़ बात उठाई और कहा,
मैं ईश्वर के जीवन की शपथ खाता हूँ जिस ने मेरा न्याय बिगाड़ दिया, अर्थात् उस सर्वशक्तिमान के जीवन की जिस ने मेरा प्राण कड़ुआ कर दिया।
क्योंकि अब तक मेरी सांस बराबर आती है, और ईश्वर का आत्मा मेरे नथुनों में बना है।
मैं यह कहता हूँ कि मेरे मुंह से कोई कुटिल बात न निकलेगी, और न मैं कपट की बातें बोलूंगा।
ईश्वर न करे कि मैं तुम लोगों को सच्चा ठहराऊं, जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा।
मैं अपना धर्म पकड़े हुए हूँ और उसको हाथ से जाने न दूंगा; क्योंकि मेरा मन जीवन भर मुझे दोषी नहीं ठहराएगा।
मेरा शत्रु दुष्टों के समान, और जो मेरे विरूद्ध उठता है वह कुटिलों के तुल्य ठहरे।
जब ईश्वर भक्तिहीन मनुष्य का प्राण ले ले, तब यद्यपि उस ने धन भी प्राप्त किया हो, तौभी उसकी क्या आशा रहेगी?
जब वह संकट में पड़े, तब क्या ईश्वर उसकी दोहाई सुनेगा?
क्या वह सर्वशक्तिमान में सुख पा सकेगा, और हर समय ईश्वर को पुकार सकेगा?
मैं तुम्हें ईश्वर के काम के विषय शिक्षा दूंगा, और सर्वशक्तिमान की बात मैं न छिपाऊंगा
देखो, तुम लोग सब के सब उसे स्वयं देख चुके हो, फिर तुम व्यर्थ विचार क्यों पकड़े रहते हो?
दुष्ट पनुष्य का भाग ईश्वर की ओर से यह है, और बलात्कारियों का अंश जो वे सर्वशक्तिमान के हाथ से पाते हैं, वह यह है, कि
चाहे उसके लड़केबाले गिनती में बढ़ भी जाएं, तौभी तलवार ही के लिये बढ़ेंगे, और उसकी सन्तान पेट भर रोटी न खाने पाएगी।
उसके जो लोग बच जाएं वे मरकर क़ब्र को पहुंचेंगे; और उसके यहां की विधवाएं न रोएंगी।
चाहे वह रूपया धूलि के समान बटोर रखे और वस्त्रा मिट्टी के किनकों के तुल्य अनगिनित तैयार कराए,
वह उन्हें तैयार कराए तो सही, परन्तु धम उन्हें पहिन लेगा, और उसका रूपया निदष लोग आपस में बांटेंगे।
उस ने अपना घर कीड़े का सा बनाया, और खेत के रखवाले को झोपड़ी की नाई बनाया।
वह धनी होकर लेट जाए परन्तु वह गाड़ा न जाएगा; आंख खोलते ही वह जाता रहेगा।
भय की धाराएं उसे बहा ले जाएंगी, रात को बवणडर उसको उड़ा ले जाएगा।
पुरवाई उसे ऐसा उड़ा ले जाएगी, और वह जाता रहेगा और उसको उसके स्थान से उड़ा ले जाएगी।
क्योंकि ईश्वर उस पर विपत्तियां बिना तरस खाए डाल देगा, उसके हाथ से वह भाग जाने चाहेगा। लोग उस पर ताली बजाएंगे,
और उस पर ऐसी सुसकारियां भरेंगे कि वह अपने स्थान पर न रह सकेगा।

28

चांदी की खानि तो होती है, और सोने के लिये भी स्थान होता है जहां लोग ताते हैं।
जोहा मिट्टी में से निकाला जाता और पत्थर पिघलाकर पीतल बनाया जाता है
मनुष्य अन्धियारे को दूर कर, दूर दूर तक खोद खोद कर, अन्धियारे ओर घोर अन्धकार में पत्थर ढूंढ़ते हैं।
जहां लोग रहते हैं वहां से दूर वे खानि खोदते हैं वहां पृथ्वी पर चलनेवालों के भूले बिसरे हुए वे मनुष्यों से दूर लटके हुए झूलते रहते हैं।
यह भूमि जो है, इस से रोटी तो मिलती है, परन्तु उसके नीचे के स्थान मानो आग से उलट दिए जाते हैं।
उसके पत्थ्र नीलमणि का स्थान हैं, और उसी में सोने की धूलि भी है।
उसका मार्ग कोई मांसाहारी पक्षी नहीं जानता, और किसी गिठ्ठ की दृष्टि उस पर नहीं पड़ी।
उस पर अभिमानी पशुओं ने पांव नहीं धरा, और न उस से होकर कोई सिंह कभी गया है।
वह चकमक के पत्थर पर हाथ लगाता, और पहाड़ों को जड़ ही से उलट देता है।
वह चट्टान खोदकर नालियां बनाता, और उसकी आंखों को हर एक अनमोल वस्तु दिखाई पड़ती है।
वह नदियों को ऐसा रोक देता है, कि उन से एक बूंद भी पानी नहीं टपकता और जो कुछ छिपा है उसे वह उजियाले में निकालता है।
परन्तु बुध्दि कहां मिल सकती है? और समझ का स्थान कहां है?
उसका मोल मनुष्य को मालूम नहीं, जीवनलोक में वह कहीं नहीं मिलती !
अथाह सागर कहता है, वह मुझ में नहीं है, और समुद्र भी कहता है, वह मेरे पास नहीं है।
चोखे सोने से वह मोल लिया नहीं जाता। और न उसके दाम के लिये चान्दी तौली जाती है।
न तो उसके साथ ओपीर के कुन्दन की बराबरी हो सकती है; और न अनमोल सुलैमानी पत्थर वा नीलमणि की।
न सोना, न कांच उसके बराबर ठहर सकता है, कुन्दन के गहने के बदले भी वह नहीं मिलती।
मूंगे और स्फटिकमणि की उसके आगे क्या चर्चा ! बुध्दि का मोल माणिक से भी अधिक है।
कूश देश के पद्मराग उसके तुल्य नहीं ठहर सकते; और न उस से चोखे कुन्दन की बराबरी हो सकती है।
फिर बुध्दि कहां मिल सकती है? और समझ का स्थान कहां?
वह सब प्राणियों की आंखों से छिपी है, और आकाश के पक्षियों के देखने में नहीं आती।
विनाश ओर मृत्यु कहती हैं, कि हमने उसकी चर्चा सुनी है।
परन्तु परमेश्वर उसका मार्ग समझता है, और उसका स्थान उसको मालूम है।
वह तो पृथ्वी की छोर तक ताकता रहता है, और सारे आकाशमणडल के तले देखता भालता है।
जब उस ने वायु का तौल ठहराया, और जल को नपुए में नापा,
और मेंह के लिये विधि और गर्जन और बिजली के लिये मार्ग ठहराया,
तब उस ने बुध्दि को देखकर उसका बखान भी किया, और उसको सिठ्ठ करके उसका पूरा भेद बूझ लिया।
तब उस न मनुष्य से कहा, देख, प्रभु का भय मानना यही बुध्दि हैे और बुराई से दूर रहना यही समझ है।

29

अरयूब ने और भी अपनी गूढ़ बात उठाई और कहा,
भला होता, कि मेरी दशा बीते हुए महीनों की सी होती, जिन दिनों में ईश्वर मेरी रक्षा करता था,
जब उसके दीपक का प्रकाश मेरे सिर पर रहता था, और उस से उजियाला पाकर मैं अन्धेरे में चलता था।
वे तो मेरी जवानी के दिन थे, जब ईश्वर की मित्राता मेरे डेरे पर प्रगट होती थी।
उस समय तक तो सर्वशक्तिमान मेरे संग रहता था, और मेरे लड़केबाले मेरे चारों ओर रहते थे।
तब मैं अपने पगों को मलाई से धोता था और मेरे पास की चट्टानों से तेल की धाराएं बहा करती थीं।
जब जब मैं नगर के फाटक की ओर चलकर खुले स्थान में अपने बैठने का स्थान तैयार करता था,
तब तब जवान मुझे देखकर छिप जाते, और पुरनिये उठकर खड़े हो जाते थे।
हाकिम लोग भी बोलने से रूक जाते, और हाथ से मुंह मूंदे रहते थे।
प्रधान लोग चुप रहते थे और उनकी जीभ तालू से सट जाती थी।
क्योंकि जब कोई मेरा समाचार सुनता, तब वह मुझे धन्य कहता था, और जब कोई मुझे देखता, तब मेरे विषय साक्षी देता था;
क्योंकि मैं दोहाई देनेवाले दीन जन को, और असहाय अनाथ को भी छुड़ाता था।
जो नाश होने पर था मुझे आशीर्वाद देता था, और मेरे कारण विधवा आनन्द के मारे गाती थी।
मैं धर्म को पहिने रहा, और वह मुझे ढांके रहा; मेरा न्याय का काम मेरे लिये बागे और सुन्दर पगड़ी का काम देता था।
मैं अन्धों के लिये आंखें, और लंगड़ों के लिये पांव ठहरता था।
दरिद्र लोगों का मैं पिता ठहरता था, और जो मेरी पहिचान का न था उसके मुक़ मे का हाल मैं पूछताछ करके जान लेता था।
मैं कुटिल मनुष्यों की डाढ़ें तोड़ डालता, और उनका शिकार उनके मुंह से छीनकर बचा लेता था।
तब मैं सोचता था, कि मेरे दिन बालू के किनकों के समान अनगिनत होंगे, और अपने ही बसेरे में मेरा प्राण छूटेगा।
मेरी जड़ जल की ओर फैली, और मेरी डाली पर ओस रात भर पड़ी,
मेरी महिमा ज्यों की त्यों बनी रहेगी, और मेरा धनुष मेरे हाथ में सदा नया होता जाएगा।
लोग मेरी ही ओर कान लगाकर ठहरे रहते थे और मेरी सम्मति सुनकर चुप रहते थे।
जब मैं बोल चुकता था, तब वे और कुछ न बोलते थे, मेरी बातें उन पर मेंह की ताई बरसा करती थीं।
जैसे लोग बरसात की वैसे ही मेरी भी बाट देखते थे; और जैसे बरसात के अन्त की वर्षा के लिये वैसे ही वे मुंह पसारे रहते थे।
जब उनको कुछ आशा न रहती थी तब मैं हंसकर उनको प्रसन्न करता था; और कोई मेरे मुंह को बिगाड़ न सकता था।
मैं उनका मार्ग चुन लेता, और उन में मुख्य ठहरकर बैठा करता था, और जैसा सेना में राजा वा विलाप करनेवालों के बीच शान्तिदाता, वैसा ही मैं रहता था।

30

परन्तु अब जिनकी अवस्था मुझ से कम है, वे मेरी हंसी करते हैं, वे जिनके पिताओं को मैं अपनी भेड़ बकरियों के कुत्तों के काम के योग्य भी न जानता था।
उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता था? उनका पौरूष तो जाता रहा।
वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पड़े हुए हैं, वे अन्धेरे और सुनसान स्थानों में सुखी धूल फांकते हैं।
वे झाड़ी के आसपास का लोनिया साग तोड़ लेते, और झाऊ की जड़ें खाते हैं।
वे मनुष्यों के बीच में से निकाले जाते हैं, उनके पीछे ऐसी पुकार होती है, जैसी जोर के पीछे।
डरावने नालों में, भूमि के बिलों में, और चट्टानों में, उन्हें रहना पड़ता है।
वे झाड़ियों के बीच रेंकते, और बिच्छू पौधों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं।
वे मूढ़ों और नीच लोगों के वंश हैं जो मार मार के इस देश से निकाले गए थे।
ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, और मुझ पर ताना मारते हैं।
वे मुझ से घिन खाकर दूर रहते, वा मेरे मुंह पर थूकने से भी नहीं डरते।
ईश्वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे देख दिया है, इसलिये वे मेरे साम्हने मुंह में लगाम नहीं रखते।
मेरी दहिनी अलंग पर बजारू लोग उठ खड़े होते हैं, वे मेरे पांव सरका देते हैं, और मेरे नाश के लिये अपने उपाय बान्धते हैं।
जिनके कोई सहायक नहीं, वे भी मेरे रास्तों को बिगाड़ते, और मेरी विपत्ति को बढ़ाते हैं।
मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं, और उजाड़ के बीच में होकर मुझ पर धावा करते हैं।
मुुझ में घबराहट छा गई है, और मेरा रईसपन मानो वायु से उड़ाया गया है, और मेरा कुशल बादल की नाई जाता रहा।
और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ; दु:ख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है।
रात को मेरी हडि्डयां मेरे अन्दर छिद जाती हैं और मेरी नसों में चैन नहीं पड़ती
मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्रा का रूप बदल गया है; वह मेरे कुत्तें के गले की नाई मुझ से लिपटी हुई है।
उस ने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है, और मैं मिट्टी और राख के तुल्य हो गया हूँ।
मैं तेरी दोहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता; मैं खड़ा होता हूँ परन्तु तू मेरी ओर घूरने लगता है।
तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है; और अपने बली हाथ से मुझे सताता हे।
तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है, और आंधी के पानी में मुझे गला देता है।
हां, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा, और उस घर में पहुंचाएगा, जो सब जीवित प्राणियों के लिये ठहराया गया है।
तौभी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा? और क्या कोई विपत्ति के समय दोहाई न देगा?
क्या मैं उसके लिये रोता नहीं था, जिसके दुर्दिन आते थे? और क्या दरिद्र जन के कारण मैं प्राण में दुखित न होता था?
जब मैं कुशल का मार्ग जोहता था, तब विपत्ति आ पड़ी; और जब मैं उजियाले का आसरा लगाए था, तब अन्धकार छा गया।
मेरी अन्तड़ियां निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं; मेरे दु:ख के दिन आ गए हैं।
मैं शोक का पहिरावा पहिने हुए मानो बिना सूर्य की गम के काला हो गया हूँ। और सभा में खड़ा होकर सहायता के लिये दोहाई देता हूँ।
मैं गीदड़ों का भाई और शुतुर्मुग का संगी हो गया हूँ।
मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है, और तप के मारे मेरी हडि्डयां जल गई हैं।
इस कारण मेरी वीणा से विलाप और मेरी बांसुरी से रोने की ध्वनि निकलती है।

31

मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं?
क्योंकि ईश्वर स्वर्ग से कौन सा अंश और सर्वशक्तिमान ऊपर से कौन सी सम्पत्ति बांटता है?
क्या वह कुटिल मनुष्यों के लिये विपत्ति और अनर्थ काम करनेवालों के लिये सत्यानाश का कारण नहीं है?
क्या वह मेरी गति नहीं देखता और क्या वह मेरे पग पग नहीं गिनता?
यदि मैं व्यर्थ चाल चालता हूं, वा कपट करने के लिये मेरे पैर दौड़े हों;
(तो मैं धर्म के तराजू में तौला जाऊं, ताकि ईश्वर मेरी खराई को जान ले)।
यदि मेरे पग मार्ग से बहक गए हों, और मेरा मन मेरी आंखो की देखी चाल चला हो, वा मेरे हाथों को कुछ कलंक लगा हो;
तो मैं बीज बोऊं, परन्तु दूसरा खाए; वरन मेरे खेत की उपज उखाड़ डाली जाए।
यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है, और मैं अपने पड़ोसी के द्वार पर घात में बैठा हूँ;
तो मेरी स्त्री दूसरे के लिये पीसे, और पराए पुरूष उसको भ्रष्ट करें।
क्योंकि वह तो महापाप होता; और न्यायियों से दणड पाने के योग्य अधर्म का काम होता;
क्योंकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है, और वह मेरी सारी उपज को जड़ से नाश कर देती है।
जब मेरे दास वा दासी ने मुझ से झगड़ा किया, तब यदि मैं ने उनका हक मार दिया हो;
तो जब ईश्वर उठ खड़ा होगा, तब मैं क्या करूंगा? और जब वह आएगा तब मैं क्या उत्तर दूंगा?
क्या वह उसका बनानेवाला नहीं जिस ने मुझे गर्भ में बनाया? क्या एक ही ने हम दोनों की सूरत गर्भ में न रची थी?
यदि मैं ने कंगालों की इच्छा पूरी न की हो, वा मेरे कारण विधवा की आंखें कभी रह गई हों,
वा मैं ने अपना टुकड़ा अकेला खाया हो, और उस में से अनाथ न खाने पाए हों,
(परन्तु वह मेरे लड़कपन ही से मेरे साथ इस प्रकार पला जिस प्रकार पिता के साथ, और मैं जन्म ही से विधवा को पालता आया हूँ);
यदि मैं ने किसी को वस्त्राहीन मरते हुए देखा, वा किसी दरिद्र को जिसके पास ओढ़ने को न था
और उसको अपनी भेड़ों की ऊन के कपड़े न दिए हों, और उस ने गर्म होकर मुझे आशीर्वाद न दिया हो;
वा यदि मैं ने फाटक में अपने सहायक देखकर अनाथों के मारने को अपना हाथ उठाया हो,
तो मेरी बांह पखौड़े से उखड़कर गिर पडे, और मेरी भुजा की हड्डी टूट जाए।
क्योंकि ईश्वर के प्रताप के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि उसकी ओर की विपत्ति के कारण मैं भयभीत होकर थरथराता था।
यदि मैं ने सोने का भरोसा किया होता, वा कुन्दन को अपना आसरा कहा होता,
वा अपने बहुत से धन वा अपनी बड़ी कमाई के कारण आनन्द किया होता,
वा सूर्य को चमकते वा चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर
मैं मन ही मन मोहित हो गया होता, और अपने मुंह से अपना हाथ चूम लिया होता;
तो यह भी न्यायियों से दणड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा करके मैं ने सर्वश्रेष्ठ ईश्वर का इनकार किया होता।
यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता, वा जब उस पर विपत्ति पड़ी तब उस पर हंसा होता;
(परन्तु मैं ने न तो उसकी शाप देते हुए, और न उसके प्राणदणड की प्रार्थना करते हुए अपने मुंह से पाप किया है);
यदि मेरे डेरे के रहनेवालों ने यह न कहा होता, कि ऐसा कोई कहां मिलेगा, जो इसके यहां का मांस खाकर तृप्त न हुआ हो?
(परदेशी को सड़क पर टिकना न पड़ता था; मैं बटोही के लिये अपना द्वार खुला रखता था);
यदि मैं ने आदम की नाई अपना अपराध छिपाकर अपने अधर्म को ढांप लिया हो,
इस कारण कि मैं बड़ी भीड़ से भय खाता था, वा कुलीनों से तुच्छ किए जाने से डर गया यहां तक कि मैं द्वार से बाहर न निकला---
भला होता कि मेरा कोई सुननेवाला होता ! (सर्वशक्तिमान अभी मेरा त्याय चुकाए ! देखो मेरा दस्तखत यही है)। भला होता कि जो शिकायतनामा मेरे मु ई ने लिखा है वह मेरे पास होता !
निश्चय मैं उसको अपने कन्धे पर उठाए फिरता; और सुन्दर पगड़ी जानकर अपने सिर में बान्धे रहता।
मैं उसको अपने पग पग का हिसाब देता; मैं उसके निकट प्रधान की नाई निडर जाता।
यदि मेरी भूमि मेरे विरूद्ध दोहाई देती हो, और उसकी रेघारियां मिलकर रोती हों;
यदि मैं ने अपनी भूमि की उपज बिना मजूरी दिए खई, वा उसके मालिक का प्राण लिया हो;
तो गेहूं के बदले झड़बेड़ी, और जव के बदले जंगली घास उगें! अरयूब के वचन पूरे हुए हैं।

32

तब उन तीनों पुरूषों ने यह देखकर कि अरयूब अपनी दृष्टि में निदष है उसको उत्तर देना छोड़ दिया।
और बूजी बारकेल का पुत्रा एलीहू जो राम के कुल का था, उसका क्रोध भड़क उठा। अरयूब पर उसका क्रोध इसलिये भड़क उठा, कि उस ने परमेश्वर को नहीं, अपने ही को निदष ठहराया।
फिर अरयूब के तीनों मित्रों के विरूद्ध भी उसका क्रोध इस कारण भड़का, कि वे अरयूब को उत्तर न दे सके, तौभी उसको दोषी ठहराया।
एलीहू तो अपने को उन से छोटा जानकर अरयूब की बातों के अन्त की बाट जोहता रहा।
परन्तु जब एलीहू ने देखा कि ये तीनों पुरूष कुछ उत्तर नहीं देते, तब उसका क्रोध भड़क उठा।
तब बूजी बारकेल का पुत्रा एलीहू कहने लगा, कि मैं तो जवान हूँ, और तुम बहुत बूढ़े हो; इस कारण मैं रूका रहा, और अपना विचार तुम को बताने से डरता था।
मैं सोचता था, कि जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुध्दि सिखाएं।
परन्तु मनुष्य में आत्मा तो है ही, और सर्वशक्तिमान अपनी दी हुई सांस से उन्हें समझने की शक्ति देता है।
जो बुध्दिमान हैं वे बड़े बड़े लोग ही नहीं और न्याय के समझनेवाले बूढ़े ही नहीं होते।
इसलिये मैं कहता हूं, कि मेरी भी सुनो; मैं भी अपना विचार बताऊंगा।
मैं तो तुम्हारी बातें सुनने को ठहरा रहा, मैं तुम्हारे प्रमाण सुनने के लिये ठहरा रहा; जब कि तुम कहने के लिये शब्द ढूढ़ते रहे।
मैं चित्त लगाकर तुम्हारी सुनता रहा। परन्तु किसी ने अरयूब के पक्ष का खणडन नहीं किया, और न उसकी बातों का उत्तर दिया।
तुम लोग मत समझो कि हम को ऐसी बुध्दि मिली है, कि उसका खणडन मनुष्य नहीं ईश्वर ही कर सकता है।
जो बातें उस ने कहीं वह मेरे विरूद्ध तो नहीं कहीं, और न मैं तुम्हारी सी बातों से उसको उत्तर दूंगा।
वे विस्मित हुए, और फिर कुछ उत्तर नहीं दिया; उन्हों ने बातें करना छोड़ दिया।
इसलिये कि वे कुछ नहीं बोलते और चुपचाप खड़े हैं, क्या इस कारण मैं ठहरा रहूं?
परन्तु अब मैं भी कुछ कहूंगा मैं भी अपना विचार प्रगट करूंगा।
क्योंकि मेरे मन में बातें भरी हैं, और मेरी आत्मा मुझे उभार रही है।
मेरा मन उस दाखमधु के समान है, जो खोला न गया हो; वह नई कुप्पियों की नाई फटा चाहता है।
शान्ति पाने के लिये मैं बोलूंगा; मैं मुंह खोलकर उत्तर दूंगा।
न मैं किसी आदमी का पक्ष करूंगा, और न मैं किसी मनुष्य को चापलूसी की पदवी दूंगा।
क्योंकि मुझे तो चापलूसी करना आता ही नहीं नहीं तो मेरा सिरजनहार क्षण भर में मुझे उठा लेता।

33

तौभी हे अरयूब ! मेरी बातें सुन ले, और मेरे सब वचनों पर कान लगा।
मैं ने तो अपना मुंह खोला है, और मेरी जीभ मुंह में चुलबुला रही है।
मेरी बातें मेरे मन की सिधाई प्रगट करेंगी; जो ज्ञान मैं रखता हूं उसे खराई के साथ कहूंगा।
मुझे ईश्वर की आत्मा ने बनाया है, और सर्वशक्तिमान की सांस से मुझे जीवन मिलता है।
यदि तू मुझे उत्तर दे सके, तो दे; मेरे साम्हने अपनी बातें क्रम से रचकर खड़ा हो जा।
देख मैं ईश्वर के सन्मुख तेरे तुल्य हूँ; मैं भी मिट्टी का बना हुआ हूँ।
सुन, तुझे मेरे डर के मारे घबराना न पड़ेगा, और न तू मेरे बोझ से दबेगा।
निेसन्देह तेरी ऐसी बात मेरे कानों में पड़ी है और मैं ने तेरे वचन सुने हैं, कि
मैं तो पवित्रा और निरपराध और निष्कलंक हूँ; और मुझ में अर्ध्म नहीं है।
देख, वह मुझ से झगड़ने के दांव ढूंढ़ता है, और मुझे अपना शत्रु समझता है;
वह मेरे दोनों पांवों को काठ में ठोंक देता है, और मेरी सारी चाल की देखभाल करता है।
देख, मैं तुझे उत्तर देता हूँ, इस बात में तू सच्चा नहीं है। क्योंकि ईश्वर मनुष्य से बड़ा है।
तू उस से क्यों झगड़ता है? क्योंकि वह अपनी किसी बात का लेखा नहीं देता।
क्योंकि ईश्वर तो एक क्या वरन दो बार बोलता है, परन्तु लोग उस पर चित्त नहीं लगाते।
स्वप्न में, वा रात को दिए हुए दर्शन में, जब मनुष्य घोर निद्रा में पड़े रहते हैं, वा बिछौने पर सोते समय,
तब वह मनुष्यों के कान खोलता है, और उनकी शिक्षा पर मुहर लगाता है,
जिस से वह मनुष्य को उसके संकल्प से रोके और गर्व को मनुष्य में से दूर करे।
वह उसके प्राण को गढ़हे से बचाता है, और उसके जीवन को खड़ग की मार से बचाता हे।
उसे ताड़ना भी हेती है, कि वह अपने बिछौने पर पड़ा पड़ा तड़पता है, और उसकी हड्डी हड्डी में लगातार झगड़ा होता है
यहां तक कि उसका प्राण रोटी से, और उसका मन स्वादिष्ट भोजन से घृणा करने लगता है।
उसका मांस ऐसा सूख जाता है कि दिखाई नहीं देता; और उसकी हडि्डयां जो पहिले दिखाई नहीं देती थीं निकल आती हैं।
निदान वह कबर के निकट पहुंचता है, और उसका जीवन नाश करनेवालों के वश में हो जाता है।
यदि उसके लिये कोई बिचवई स्वर्ग दूत मिले, जो हजार में से एक ही हो, जो भावी कहे। और जो मनुष्य को बताए कि उसके लिये क्या ठीक है।
तो वह उस पर अनुग्रह करके कहता है, कि उसे गढ़हे में जाने से वचा ले, मुझे छुड़ौती मिली है।
तब उस मनुष्य की देह बालक की देह से अधिक स्वस्थ और कोमल हो जाएगी; उसकी जवानी के दिन फिर लौट आएंगे।
वह ईश्वर से बिनती करेगा, और वह उस से प्रसन्न होगा, वह आनन्द से ईश्वर का दर्शन करेगा, और ईश्वर मनुष्य को ज्यों का त्यों धम कर देगा।
वह मनुष्यों के साम्हने गाने ओर कहने लगता है, कि मैं ने पाप किया, और सच्चाई को उलट पुलट कर दिया, परन्तु उसका बदला मुझे दिया नहीं गया।
उस ने मेरे प्राण क़ब्र में पड़ने से बचाया है, मेरा जीवन उजियाले को देखेगा।
देख, ऐसे ऐसे सब काम ईश्वर पुरूष के साथ दो बार क्या वरन तीन बार भी करता है,
जिस से उसको क़ब्र से बचाए, और वह जीवनलोक के उजियाले का प्रकाश पाए।
हे अरयूब ! कान लगाकर मेरी सुन; चुप रह, मैं और बोलूंगा।
यदि तुझे बात कहनी हो, तो मुझे उत्तर दे; बोल, क्योंकि मैं तुझे निदष ठहराना चाहता हूँ।
यदि नहीं, तो तु मेरी सुन; चुप रह, मैं तुझे बुध्दि की बात सिखाऊंगा।

34

फिर एलीहू यों कहता गया;
हे बुध्दिमानो ! मेरी बातें सुनो, और हे ज्ञानियो ! मेरी बातों पर कान लगाओ;
क्योंकि जैसे जीभ से चखा जाता है, वैसे ही वचन कान से परखे जाते हैं।
जो कुछ ठीक है, हम अपने लिये चुन लें; जो भला है, हम आपस में समझ बूझ लें।
क्योंकि अरयूब ने कहा है, कि मैं निदष हूँ, और ईश्वर ने मेरा हक़ मार दिया है।
यद्यपि मैं सच्चाई पर हूं, तौभी झूठा ठहरता हूँ, मैं निरपराध हूँ, परन्तु मेरा घाव असाध्य है।
अरयूब के तुल्य कौन शूरवीर है, जो ईश्वर की निन्दा पानी की नाई पीता है,
जो अनर्थ करनेवालों का साथ देता, और दुष्ट मनुष्यों की संगति रखता है?
उस ने तो कहा है, कि मनुष्य को इस से कुछ लाभ नहीं कि वह आनन्द से परमेश्वर की संगति रखे।
इसलिऐ हे समझवालो ! मेरी सुनो, यह सम्भव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशकितमान बुराई करे।
वह मनुष्य की करनी का फल देता है, और प्रत्येक को अपनी अपनी चाल का फल भुगताता है।
निेसन्देह ईश्वर दुष्टता नहीं करता और न सर्वशक्तिमान अन्याय करता है।
किस ने पृथ्वी को उसके हाथ में सौंप दिया? वा किस ने सारे जगत का प्रबन्ध किया?
यदि वह मनुष्य से अपना मन हटाये और अपना आत्मा और श्वास अपने ही में समेट ले,
तो सब देहधारी एक संग नाश हो जाएंगे, और मनुष्य फिर मिट्टी में मिल जाएगा।
इसलिये इसको सुनकर समझ रख, और मेरी इन बातों पर कान लगा।
जो न्याय का बैरी हो, क्या वह शासन करे? जो पूर्ण धम है, क्या तू उसे दुष्ट ठहराएगा?
वह राजा से कहता है कि तू नीच है; और प्रधानों से, कि तुम दुष्ट हो।
ईश्वर तो हाकिमों का पक्ष नहीं करता और धनी और कंगाल दोनों को अपने बनाए हुए जानकर उन में कुछ भेद नहीं करता।
आधी रात को पल भर में वे मर जाते हैं, और प्रजा के लोग हिलाए जाते और जाते रहते हैं। और प्रतापी लोग बिना हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं।
क्योंकि ईश्वर की आंखें मनुष्य की चालचलन पर लगी रहती हैं, और वह उसकी सारी चाल को देखता रहता है।
ऐसा अन्धियारा वा घोर अन्धकार कहीं नहीं है जिस में अनर्थ करनेवाले छिप सकें।
क्योंकि उस ने मनुष्य का कुछ समय नहीं ठहराया ताकि वह ईश्वर के सम्मुख अदालत में जाए।
वह बड़े बड़े बलवानों को बिना मुछपाछ के चूर चूर करता है, और उनके स्थान पर औरों को खड़ा कर देता है।
इसलिये कि वह उनके कामों को भली भांति जानता है, वह उन्हें रात में ऐसा उलट देता है कि वे चूर चूर हो जाते हैं।
वह उन्हें दुष्ट जानकर सभों के देखते मारता है,
क्योंकि उन्हों ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया है, और उसके किसी मार्ग पर चित्त न लगाया,
यहां तक कि उनके कारण कंगालों की दोहाई उस तक पहुंची और उस ने दीन लोगों की दोहाई सुनी।
जब वह चैन देता तो उसे कौन दोषी ठहरा सकता है? और जब वह मुंह फेर ले, तब कौन उसका दर्शन पा सकता है? जाति भर के साथ और अकेले मनुष्य, दोनों के साथ उसका बराबर व्यवहार है
ताकि भक्तिहीन राज्य करता न रहे, और प्रजा फन्दे में फंसाई न जाए।
क्या किसी ने कभी ईश्वर से कहा, कि मैं ने दणड सहा, अब मैं भविष्य में बुराई न करूंगा,
जो कुछ मुझे नहीं सूझ पड़ता, वह तू मुझे सिखा दे; और यदि मैं ने टेढ़ा काम किया हो, तो भविष्य में वैसा न करूंगा?
क्या वह तेरे ही मन के अनुसार बदला पाए क्योंकि तू उस से अप्रसन्न है? क्योंकि तुझे निर्णय करना है, न कि मुझे; इस कारण जो कुछ तुझे समझ पड़ता है, वह कह दे।
सब ज्ञानी पुरूष वरन जितले बुध्दिमान मेरी सुनते हैं वे मुझ से कहेंगे, कि
अरयूब ज्ञान की बातें नहीं कहता, और न उसके वचन समझ के साथ होते हैं।
भला होता, कि अरयूब अन्त तब परीक्षा में रहता, क्योंकि उस ने अनर्थियों के से उत्तर दिए हैं।
और वह अपने पाप में विरोध बढ़ाता है; ओर हमारे बीच ताली बजाता है, और ईश्वर के पिरूठ्ठ बहुत सी बातें बनाता है।

35

फिर एलीहू इस प्रकार और भी कहता गया,
कि क्या तू इसे अपना हम समझता है? क्या तू दावा करता है कि तेरा धर्म ईश्वर के धर्म से अधिक है?
जो तू कहता है कि मुझे इस से क्या लाभ? और मुझे पापी होने में और न होने में कौन सा अधिक अन्तर है?
मैं तुझे और तेरे साथियों को भी एक संग उत्तर देता हूँ।
आकाश की ओर दृष्टि करके देख; और आकाशमणडल को ताक, जो तुझ से ऊंचा है।
यदि तू ने पाप किया है तो ईश्वर का क्या बिगड़ता है? यदि तेरे अपराध बहुत ही बढ़ जाएं तौभी तू उसके साथ क्या करता है?
यदि तू धम है तो उसको क्या दे देता है; वा उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है?
तेरी दुष्टता का फल तुझ ऐसे ही पुरूष के लिये है, और तेरे धर्म का फल भी मनुष्य मात्रा के लिये है।
बहुत अन्धेर होने के कारण वे चिल्लाते हैं; और बलवान के बाहुबल के कारण वे दोहाई देते हैं।
तौभी कोई यह नहीं कहता, कि मेरा सृजनेवाला ईश्वर कहां है, जो रात में भी गीत गवाता है,
और हमें पृथ्वी के पशुओं से अधिक शिक्षा देता, और आकाश के पक्षियों से अधिक बुध्दि देता है?
वे दोहाई देते हैं परन्तु कोई उत्तर नहीं देता, यह बुरे लोगों के घमणड के कारण होता है।
निश्चय ईश्वर व्यर्थ बातें कभी नहीं सुनता, और न सर्वशक्तिमान उन पर चित्त लगाता है।
तो तू क्यों कहता है, कि वह मुझे दर्शन नहीं देता, कि यह मुक़ मा उसके साम्हने है, और तू उसकी बाट जोहता हुआ ठहरा है?
परन्तु अभी तो उस ने क्रोध करके दणड नहीं दिया है, और अभिमान पर चित्त बहुत नहीं लगाया;
इस कारण अरयूब व्यर्थ मुंह खोलकर अज्ञानता की बातें बहुत बनाता है।

36

फिर एलीहू ने यह भी कहा,
कुछ ठहरा रह, और मैं तुझ को समझाऊंगा, क्योंकि ईश्वर के पक्ष में मुझे कुछ और भी कहना है।
मैं अपने ज्ञान की बात दूर से ले आऊंगा, और अपने सिरजनहार को धम ठहराऊंगा।
निश्चय मेरी बातें झूठी न होंगी, वह जो तेरे संग है वह पूरा ज्ञानी है।
देख, ईश्वर सामथ है, और किसी को तुच्छ नहीं जानता; वह समझने की शक्ति में समर्थ है।
वह दुष्टों को जिलाए नहीं रखता, और दीनों को उनका हक देता है।
वह धर्मियों से अपनी आंखें नहीं फेरता, वरन उनको राजाओं के संग सदा के लिये सिंहासन पर बैठाता है, और वे ऊंचे पद को प्राप्त करते हैं।
ओर चाहे वे बेड़ियों में जकड़े जाएं और दु:ख की रस्सियों से बान्धे जाए,
तौभी ईश्वर उन पर उनके काम, और उनका यह अपराध प्रगट करता है, कि उन्हों ने गर्व किया है।
वह उनके कान शिक्षा सुनने के लिये खोलता है, और आज्ञा देता है कि वे बुराई से परे रहें।
यदि वे सुनकर उसकी सेवा करें, तो वे अपने दिन कल्याण से, और अपने वर्ष सुख से पूरे करते हैं।
परन्तु यदि वे न सुनें, तो वे खड़ग से नाश हो जाते हैं, और अज्ञानता में मरते हैं।
परन्तु वे जो मन ही मन भक्तिहीन होकर क्रोध बढ़ाते, और जब वह उनको बान्धता है, तब भी दोहाई नहीं देते,
वे जवानी में मर जाते हैं और उनका जीवन लूच्चों के बीच में नाश होता है।
वह दुख्यिों को उनके दु:ख से छुड़ाता है, और उपद्रव में उनका कान खोलता है।
परन्तु वह तुझ को भी क्लेश के मुंह में से निकालकर ऐसे चौड़े स्थान में जहां सकेती नहीं है, पहुचा देता है, और चिकना चिकना भोजन तेरी मेज पर परोसता है।
परन्तु तू ने दुष्टों का सा निर्णय किया है इसलिये निर्णय और न्याय तुझ से लिपटे रहते है।
देख, तू जलजलाहट से उभर के ठट्ठा मत कर, और न प्रायश्चित्त को अधिक बड़ा जानकर मार्ग से मुड़।
क्या तेरा रोना वा तेरा बल तुझे दु:ख से छुटकारा देगा?
उस रात की अभिलाषा न कर, जिस में देश देश के लोग अपने अपने स्थान से मिटाए जाते हैं।
चौकस रह, अनर्थ काम की ओर मत फिर, तू ने तो देख से अधिक इसी को चुन लिया है।
देख, ईश्वर अपने सामर्ध्य से बड़े बड़े काम करता है, उसके समान शिक्षक कौन है?
किस ने उसके चलने का मार्ग ठहराया है? और कौन उस से कह सकता है, कि तू ने अनुचित काम किया है?
उसके कामों की महिमा और प्रशंसा करने को स्मरण रख, जिसकी प्रशंसा का गीत मनुष्य गाते चले आए हैं।
सब मनुष्य उसको ध्यान से देखते आए हैं, और मनुष्य उसे दूर दूर से देखता है।
देख, ईश्वर महान और हमारे ज्ञान से कहीं परे है, और उसके वर्ष की गिनती अनन्त है।
क्योंकि वह तो जल की बूंदें ऊपर को खींच लेता है वे कुहरे से मेंह होकर टपकती हैं,
वे ऊंचे ऊंचे बादल उंडेलते हैं और मनुष्यों के ऊपर बहुतायत से बरसाते हैं।
फिर क्या कोई बादलों का फैलना और उसके मणडल में का गरजना समझ सकता है?
देख, वह अपने उजियाले को चहुँओर फैलाता है, और समुद्र की थाह को ढांपता है।
क्योंकि वह देश देश के लोगों का न्याय इन्हीं से करता है, और भोजनवस्तुएं बहुतायत से देता है।
वह बिजली को अपने हाथ में लेकर उसे आज्ञा देता है कि दुश्मन पर गिरे।
इसकी कड़क उसी का समाचार देती है पशु भी प्रगट करते हैं कि अन्धड़ चढ़ा आता है।

37

फिर इस बात पर भी मेरा हृदय कांपता है, और अपने स्थान से उछल पड़ता है।
उसके बोलने का शब्द तो सुनो, और उस शब्द को जो उसके मुंह से निकलता है सुनो।
वह उसको सारे आकाश के तले, और अपनी बिजली को पृथ्वी की छोर तक भेजता है।
उसके पीछे गरजने का शब्द होता है; वह अपने प्रतापी शब्द से गरजता है, और जब उसका शब्द सुनाई देता है तब बिजली लगातार चमकने लगती है।
ईश्वर गरजकर अपना शब्द अदभ़ुत रीति से सुनाता है, और बड़े बड़े काम करता है जिनको हम नहीं समझते।
वह तो हिम से कहता है, पृथ्वी पर गिर, और इसी प्रकार मेंह को भी और मूसलाधार वर्षा को भी ऐसी ही आज्ञा देता है।
वह सब मनुष्यों के हाथ पर मुहर कर देता है, जिस से उसके बनाए हुए सब मनुष्य उसको पहचानें।
तब वनपशु गुफाओं में घुस जाते, और अपनी अपनी मांदों में रहते हैं।
दक्खिन दिशा से बवणडर और उतरहिया से जाड़ा आता है।
ईश्वर की श्वास की फूंक से बरफ पड़ता है, तब जलाशयों का पाट जम जाता है।
फिर वह घटाओं को भाफ़ से लादता, और अपनी बिजली से भरे हुए उजियाले का बादल दूर तक फैलाता है।
वे उसकी बुध्दि की युक्ति से इधर उधर फिराए जाते हैं, इसलिये कि जो आज्ञा वह उनको दे, उसी को वे बसाई हुई पृथ्वी के ऊपर पूरी करें।
चाहे ताड़ना देने के लिये, चाहे अपनी पृथ्वी की भलाई के लिये वा मनुष्यों पर करूणा करने के लिये वह उसे भेजे।
हे अरयूब ! इस पर कान लगा और सुन ले; चुपचाप खड़ा रह, और ईश्वर के आश्चर्यकम का विचार कर।
क्या तू जानता है, कि ईश्वर क्योंकर अपने बादलों को आज्ञा देता, और अपने बादल की बिजली को चमकाता है?
क्या तू घटाओं का तौलना, वा सर्वज्ञानी के आश्चर्यकर्म जानता है?
जब पृथ्वी पर दक्खिनी हवा ही के कारण से सन्नाटा रहता है तब तेरे वस्त्रा गर्म हो जाते हैं?
फिर क्या तू उसके साथ आकाशमणडल को तान सकता है, जो ढाले हुए दर्पण के तुल्य दृढ़ है?
तू हमें यह सिखा कि उस से क्या कहना चाहिये? क्योंकि हम अन्धियारे के कारण अपना व्याख्यान ठीक नहीं रच सकते।
क्या उसको बनाया जाए कि मैं बोलना चाहता हूँ? क्या कोई अपना सत्यानाश चाहता है?
अभी तो आकाशमणडल में का बड़ा प्रकाश देखा नहीं जाता जब वायु चलकर उसको शुठ्ठ करती है।
उत्तर दिशा से सुनहली ज्योति आती है ईश्वर भययोग्य तेज से आभूषित है।
सर्वशक्तिमान जो अति सामथ है, और जिसका भेद हम पा नहीं सकते, वह न्याय और पूर्ण धर्म को छोड़ अत्याचार नहीं कर सकता।
इसी कारण सज्जन उसका भय मानते हैं, और जो अपनी दृष्टि में बुध्दिमान हैं, उन पर वह दृष्टि नहीं करता।

38

तब यहोवा ने अरयूब को आँधी में से यूं उत्तर दिया,
यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है?
पुरूष की नाई अपनी कमर बान्ध ले, क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे उत्तर दे।
जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली, तब तू कहां था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे।
उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा?
उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई, वा किस ने उसके कोने का पत्थर लिठाया,
जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्रा जयजयकार करते थे?
फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार मूंदकर उसको रोक दिया;
जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया और घोर अन्धकार में लमेट दिया,
और उसके लिये सिवाना बान्धा और यह कहकर बेंड़े और किवाड़े लगा दिए, कि
यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडनेवाली लहरें यहीं थम जाएं?
क्या तू ने जीवन भर में कभी भोर को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्थान जताया है,
ताकि वह पृथ्वी की छोरों को वश में करे, और दुष्ट लोग उस में से झाड़ दिए जाएं?
वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएं मानो वस्त्रा पहिने हुए दिखाई देती हैं।
दुष्टों से उनका उजियाला रोक लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बांह तोड़ी जाती है।
क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, वा गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?
क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए, क्या तू घोर अन्धकार के फाटकों को कभी देखन पाया है?
क्या तू ने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे।
उजियाले के निवास का मार्ग कहां है, और अन्धियारे का स्थान कहां है?
क्या तू उसे उसके सिवाने तक हटा सकता है, और उसके घर की डगर पहिचान सकता है?
निेसन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा ! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हुआ था, और तू बहुत आयु का है।
फिर क्या तू कभी हिम के भणडार में पैठा, वा कभी ओलों के भणडार को तू ने देखा है,
जिसको मैं ने संकट के समय और युठ्ठ और लड़ाई के दिन के लिये रख छोड़ा है?
किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है, ओर पुरवाई पृथ्वी पर बहाई जाती है?
महावृष्टि के लिये किस ने नाला काटा, और कड़कनेवाली बिजली के लिये मार्ग बनाया है,
कि निर्जन देश में और जंगल में जहां कोई मनुष्य नहीं रहता मेंह बरसाकर,
उजाड़ ही उजाड़ देश को सींचे, और हरी घास उगाए?
क्या मेंह का कोई पिता है, और ओस की बूंदें किस ने उत्पन्न की?
किस के गर्भ से बर्फ निकला है, और आकाश से गिरे हुए पाले को कौन उत्पन्न करता है?
जल पत्थर के समान जम जाता है, और गहिरे पानी के ऊपर जमावट होती है।
क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूंथ सकता वा मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है?
क्या तू राशियों को ठीक ठीक समय पर उदय कर सकता, वा सप्तर्षि को साथियों समेत लिए चल सकता है?
क्या तू आकाशमणडल की विधियां जानता और पृथ्वी पर उनका अधिकार ठहरा सकता है?
क्या तू बादलों तक अपनी वाणी पहुंचा सकता है ताकि बहुत जल बरस कर तुझे छिपा ले?
क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है, कि वह जाए, और तुझ से कहे, मैं उपस्थित हूँ?
किस ने अन्तेकरण में बुध्दि उपजाई, और मन में समझने की शक्ति किस ने दी है?
कौन बुध्दि से बादलों को गिन सकता है? और कौन आकाश के कुप्पों को उणडेल सकता है,
जब धूलि जम जाती है, और ढेले एक दूसरे से सट जाते हैं?
क्या तू सिंहनी के लिये अहेर पकड़ सकता, और जवान सिंहों का पेट भर सकता है,
जब वे मांद में बैठे हों और आड़ में घात लगाए दबक कर बैठे हों?
फिर जब कौवे के बच्चे ईश्वर की दोहाई देते हुए निराहार उड़ते फिरते हैं, तब उनको आहार कौन देता है?

39

क्या तू जानता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियां कब बच्चे देती हैं? वा जब हरिणियां बियाती हैं, तब क्या तू देखता रहता है?
क्या तू उनके महीने गिन सकता है, क्या तू उनके बियाने का समय जानता है?
जब वे बैठकर अपने बच्चों को जनतीं, वे अपनी पीड़ों से छूट जाती हैं?
उनके बच्चे हृष्टपुष्ट होकर मैदान में बढ़ जाते हैं; वे निकल जाते और फिर नहीं लौटते।
किस ने बनैले गदहे को स्वाधीन करके छोड़ दिया है? किस ने उसके बन्धन खोले हैं?
उसका घर मैं ने निर्जल देश को, और उसका निवास लोनिया भूमि को ठहराया है।
वह नगर के कोलाहल पर हंसता, और हांकनेवाले की हांक सुनता भी नहीं।
पहाड़ों पर जो कुछ मिलता है उसे वह चरता वह सब भांति की हरियाली ढूंढ़ता फिरता है।
क्या जंगली सांढ़ तेरा काम करने को प्रसन्न होगा? क्या वह तेरी चरनी के पास रहेगा?
क्या तू जंगली सांढ़ को रस्से से बान्धकर रेघारियों में चला सकता है? क्या वह नालों में तेरे पीछे पीछे हेंगा फेरेगा?
क्या तू उसके बड़े बल के कारण उस पर भरोसा करेगा? वा जो परिश्रम का काम तेरा हो, क्या तू उसे उस पर छोड़ेगा?
क्या तू उसका विश्वास करेगा, कि वह तेरा अनाज घर ले आए, और तेरे खलिहान का अन्न इकट्ठा करे?
फिर शुतुरमुग अपने पंखों को आनन्द से फुलाती है, परन्तु क्या ये पंख और पर स्नेह को प्रगट करते हैं?
क्योंकि वह तो अपने अणडे भूमि पर छोड़ देती और धूलि में उन्हें गर्म करती है;
और इसकी सुधि नहीं रखती, कि वे पांव से कुचले जाएंगे, वा कोई वनपशु उनको कुचल डालेगा।
वह अपने बच्चों से ऐसी कठोरता करती है कि मानो उसके नहीं हैं; यद्यपि उसका कष्ट अकारथ होता है, तौभी वह निश्चिन्त रहती है;
क्योंकि ईश्वर ने उसको बुध्दिरहित बनाया, और उसे समझने की शक्ति नहीं दी।
जिस समय वह सीधी होकर अपने पंख फैलाती है, तब घोड़े और उसके सवार दोनों को कुछ नहीं समझती है।
क्या तू ने घोड़े को उसका बल दिया है? क्या तू ने उसकी गर्दन में फहराती हुई अयाल जमाई है?
क्या उसको टिड्डी की सी उछलने की शक्ति तू देता है? उसके कुंक्कारने का शब्द डरावना होता है।
वह तराई में टाप मारता है और अपने बल से हर्षित रहता है, वह हथियारबन्दों का साम्हना करने को निकल पड़ता है।
वह डर की बात पर हंसता, और नहीं घबराता; और तलवार से पीछे नहीं हटता।
तर्कश और चमकता हुआ सांग ओर भाला उस पर खड़खड़ाता है।
वह रिस और क्रोध के मारे भूमि को निगलता है; जब नरसिंगे का शब्द सुनाई देता है तब वह रूकता नहीं।
जब जब नरसिंगा बजता तब तब वह हिन हिन करता है, और लड़ाई और अफसरों की ललकार और जय- जयकार को दूर से सूंध लेता हे।
क्या तेरे समझाने से बाज़ उड़ता है, और दक्खिन की ओर उड़ने को अपने पंख फैलाता है?
क्या उकाब तेरी आज्ञा से ऊपर चढ़ जाता है, और ऊंचे स्थान पर अपना घोंसला बनाता है?
वह चट्टान पर रहता और चट्टान की चोटी और दृढ़स्थान पर बसेरा करता है।
वह अपनी आंखों से दूर तक देखता है, वहां से वह अपने अहेर को ताक लेता है।
उसके बच्चे भी लोहू चूसते हैं; और जहां घात किए हुए लोग होते वहां वह भी होता है।

40

फिर यहोवा ने अरयूब से यह भी कहो
क्या जो बकवास करता है वह सर्वशक्तिमान से झगड़ा करे? जो ईश्वर से विवाद करता है वह इसका उत्तर दे।
तब अरयूब ते यहोवा को उत्तर दियो
देख, मैं तो तुच्छ हूँ, मैं तुझे क्या उत्तर दूं? मैं अपनी अंगुली दांत तले दबाता हूँ।
एक बार तो मैं कह चुका, परन्तु और कुछ न कहूंगो हां दो बार भी मैं कह चुका, परन्तु अब कुछ और आगे न बढ़ूंगा।
तब यहोवा ने अरयूब को आँधी में से यह उत्तर दियो
पुरूष की नाई अपनी कमर बान्ध ले, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे बता।
क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्थ ठहराएगा? क्या तू आप निदष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?
क्या तेरा बाहुबल ईश्वर के तुल्य है? क्या तू उसके समान शब्द से गरज सकता है?
अब अपने को महिमा और प्रताप से संवार और ऐश्वरर्य और तेज के वस्त्रा पहिन ले।
अपने अति क्रोध की बाढ़ को बहा दे, और एक एक घमणडी को देखते ही उसे नीचा कर।
हर एक घमणडी को देखकर झुका दे, और दुष्ट लोगों को जहां खड़े हों वहां से गिरा दे।
उनको एक संग मिट्टी में मिला दे, और उस गुप्त स्थान में उनके मुंह बान्ध दे।
तब मैं भी तेरे विषय में मान लूंगा, कि तेरा ही दहिना हाथ तेरा उद्वार कर सकता है।
उस जलगज को देख, जिसको मैं ने तेरे साथ बनाया है, वह बैल की नाई घास खाता है।
देख उसकी कटि में बल है, और उसके पेट के पट्ठों में उसकी सामर्थ्य रहती है।
वह अपनी पूंछ को देवदार की नाई हिलाता है; उसकी जांधों की नसें एक दूसरे से मिली हुई हैं।
उसकी हटि्टयां मानो पीतल की नलियां हैं, उसकी पसुलियां मानो लोेहे के बेंड़े हैं।
वह ईश्वर का मुख्य कार्य है; जो उसका सिरजनहार हो उसके निकट तलवार लेकर आए !
निश्चय पहाड़ों पर उसका चारा मिलता है, जहां और सब वनपशु कालोल करते हैं।
वह छतनार वृक्षों के तले नरकटों की आड़ में और कीच पर लेटा करता है
छतनार वृक्ष उस पर छाया करते हैं, वह नाले के बेंत के वृक्षों से घिरा रहता है।
चाहे नदी की बाढ़ भी हो तौभी वह न घबराएगा, चाहे यरदन भी बढ़कर उसके मुंह तक आए परन्तु वह निर्भय रहेगा।
जब वह चौकस हो तब क्या कोई उसको पकड़ सकेगा, वा फन्दे लगाकर उसको नाथ सकेगा?

41

फिर क्या तू लिब्यातान अथवा मगर को बंसी के द्वारा खींच सकता है, वा डोरी से उसकी जीभ दबा सकता है?
क्या तू उसकी नाक में नकेल लगा सकता वा उसका जबड़ा कील से बेध सकता है?
क्या वह तुझ से बहुत गिड़गिड़ाहट करेगा, वा तुझ से मीठी बातें बोलेगा?
क्या वह तुझ से वाचा बान्ध्ेगा कि वह सदा तेरा दास रहे?
क्या तू उस से ऐसे खेलेगा जैसे चिड़िया से, वा अपनी लड़कियों का जी बहलाने को उसे बान्ध रखेेगा?
क्या मछुओं के दल उसे बिकाऊ माल समझेंगे? क्या वह उसे व्योपारियों में बांट देंगे?
क्या तू उसका चमड़ा भाले से, वा उसका सिर मछुवे के तिरशूलों से भर सकता है?
तू उस पर अपना हाथ ही धरे, तो लड़ाई को कभी न भूलेगा, और भविष्य में कभी ऐसा न करेगा।
देख, उसे पकड़ने की आशा निष्फल रहती है; उसके देखने ही से मन कच्चा पड़ जाता है।
कोई ऐसा साहसी नहीं, जो उसको भड़काए; फिर ऐसा कौन है जो मेरे साम्हने ठहर सके?
किस ने पुझे पहिले दिया है, जिसका बदला मुझे देना पड़े ! देख, जो कुछ सारी धरती पर है सो मेरा है।
मैं उसके अंगों के विषय, और उसके बड़े बल और उसकी बनावट की शोभा के विषय चुप न रहूंगा।
उसके ऊपर के पहिरावे को कौन उतार सकता है? उसके दांतों की दोनों पांतियों के अर्थात् जबड़ों के बीच कौन आएगा?
उसके मुख के दोनों किवाड़ कौन खोल सकता है? उसके दांत चारों ओर से डरावने हैं।
उसके छिलकों की रेखाएं घमण्ड का कारण हैं; वे मानो कड़ी छाप से बन्द किए हुए हैं।
वे एक दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं, कि उन में कुछ वायु भी नहीं पैठ सकती।
वे आपस में मिले हुए और ऐसे सटे हुए हैं, कि अलग अलग नहीं हो सकते।
फिर उसके छींकने से उजियाला चमक उठता है, और उसकी आंखें भोर की पलकों के समान हैं।
उसके मुंह से जलते हुए पलीते निकलते हैं, और आग की चिनगारियां छूटती हैं।
उसके नथ्ुानों से ऐसा धुआं निकलता है, जैसा खौलती हुई हांड़ी और जलते हुए नरकटों से।
उसकी सांस से कोयले सुलगते, और उसके मुंह से आग की लौ निकलती है।
उसकी गर्दन में सामर्थ्य बनी रहती है, और उसके साम्हने डर नाचता रहता है।
उसके मांस पर मांस चढ़ा हुआ है, और ऐसा आपस में सटा हुआ है जो हिल नहीं सकता।
उसका हृदय पत्थर सा दृढ़ है, वरन चक्की के निचले पाट के समान दृढ़ है।
जब वह उठने लगता है, तब सामथ भी डर जाते हैं, और डर के मारे उनकी सुध बुध लोप हो जाती है।
यदि कोई उस पर तलवार चलाए, तो उस से कुछ न बन पड़ेगा; और न भाले और न बछ और न तीर से।
वह लोहे को पुआल सा, और पीतल को सड़ी लकड़ी सा जानता है।
वह तीर से भगाया नहीं जाता, गोफन के पत्थर उसके लिये भूसे से ठहरते हैं।
लाठियां भी भूसे के समान गिनी जाती हैं; वह बछ के चलने पर हंसता है।
उसके निचले भाग पैने ठीकरे के समान हैं, कीच पर मानो वह हेंगा फेरता है।
वह गहिरे जल को हंडे की नाई मथ्ता हैे उसके कारण नील नदी मरहम की हांडी के समान होती है।
वह अपने पीछे चमकीली लीक छोड़ता जाता है। गहिरा जल मानो श्वेत दिखाई देने लगता है।
धरती पर उसके तुल्य और कोई नहीं है, जो ऐसा निर्भय बनाया गया है।
जो कुछ ऊंचा है, उसे वह ताकता ही रहता है, वह सब घमणिडयों के ऊपर राजा है।

42

तब अरयूब यहोवा को उत्तर दिया;
मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरी युक्तियों में से कोई रूक नहीं सकती।
तू कौन है जो ज्ञान रहित होकर युक्ति पर परदा डालता है? परन्तु मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा, अर्थात् जो बातें मेरे लिये अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिनको मैं जानता भी नहीं था।
मैं निवेदन करता हूं सुन, मैं कुछ कहूंगा, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, तू मुझे बता दे।
मैं कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं;
इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूँ।
और ऐसा हुआ कि जब यहोवा ये बातें अरयूब से कह चुका, तब उस ने तेमानी एलीपज से कहा, मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अरयूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही।
इसलिये अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छांटकर मेरे दास अरयूब के पास जाकर अपने निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अरयूब तुम्हारे लिये प्रार्थना करेगा, क्योंकि उसी की मैं ग्रहण करूंगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूंगा, क्योंकि तुम लोगों ने मेरे विषय मेरे दास अरयूब की सी ठीक बात नहीं कही।
यह सुन तेमानी एलीपज, शूही बिल्दद और नामाती सोपर ने जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया, और यहोवा ने अरयूब की प्रार्थना ग्रहण की।
जब अरयूब ने अपने मित्रों के लिये प्रार्थना की, तब यहोरवा ने उसका सारा दु:ख दूर किया, और जितना अरयूब का पहिले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया।
तब उसके सब भाई, और सब बहिनें, और जितने पहिले उसको जानते पहिचानते थे, उन सभों ने आकर उसके यहां उसके संग भोजन किया; और जितनी विपत्ति यहोवा ने उस पर डाली थी, उस सब के विषय उन्हों ने विलाप किया, और उसे शान्ति दी; और उसे एक एक सिक्का ओर सोने की एक एक बाली दी।
और यहोवा ने अरयूब के पिछले दिनों में उसको अगले दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हजार भेंड़ बकरियां, छेहजार ऊंट, हजार जोड़ी बैल, और हजार गदहियां हो गई।
और उसके सात बेटे ओर तीन बेटियां भी उत्पन्न हुई।
इन में से उस ने जेठी बेटी का नाम तो यमीमा, दूसरी का कसीआ और तीसरी का केरेन्हप्पूक रखा।
और उस सारे देश में एंसी स्त्रियां कहीं न थीं, जो अरयूब की बेटियों के समान सुन्दर हों, और उनके पिता ने उनको उनके भाइयों के संग ही सम्पत्ति दी।
इसके बाद अरयूब एक सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और चार पीढ़ी तक अपना वंश देखने पाया।
निदान अरयूब वृद्धावस्था में दीर्घायु होकर मर गया।

Holder of rights
Multilingual Bible Corpus

Citation Suggestion for this Object
TextGrid Repository (2025). Hindi Collection. Job (Hindi). Job (Hindi). Multilingual Parallel Bible Corpus. Multilingual Bible Corpus. https://hdl.handle.net/21.11113/0000-0016-9C04-4